'''लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त]]'''[[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=यशोधरा / मैथिलीशरण गुप्त]]}}{{KKCatBaalKavita}}{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyMaa}}<poem>"माँ कह एक कहानी।"बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?""कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटीकह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?माँ कह एक कहानी।"
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।""जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"
"माँ कह एक कहानी।"<br>वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"<br>"कहती है मुझसे यह चेटीलहराता था पानी, तू मेरी नानी की बेटी<br>कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?<br>माँ कह एक हाँ-हाँ यही कहानी।"<br><br>
"तू है हठीगाते थे खग कल-कल स्वर से, मानधन मेरेसहसा एक हंस ऊपर से, सुन उपवन में बड़े सवेरे,<br>तात भ्रमण करते थे तेरेगिरा बिद्ध होकर खग शर से, जहाँ सुरभि मनमानी।हुई पक्ष की हानी।"<br>"जहाँ सुरभि मनमानीहुई पक्ष की हानी? करुणा भरी कहानी! हाँ माँ यही कहानी।"<br><br>
वर्ण वर्ण के फूल खिले थेचौंक उन्होंने उसे उठाया, झलमल कर हिमबिंदु झिले थेनया जन्म सा उसने पाया,<br>हलके झोंके हिले मिले थेइतने में आखेटक आया, लहराता था पानी।लक्ष सिद्धि का मानी।"<br>"लहराता था पानी, हाँ हाँ यही लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"<br><br>
"गाते मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे खग कल कल स्वर सेरक्षी, सहसा एक हँस ऊपर से,<br>गिरा बिद्ध होकर खर शर सेतब उसने जो था खगभक्षी, हुई पक्षी हठ करने की हानी।ठानी।"<br>"हुई पक्षी हठ करने की हानी? करुणा भरी कहानीठानी!अब बढ़ चली कहानी।"<br><br>
चौंक उन्होंने उसे उठायाहुआ विवाद सदय निर्दय में, नया जन्म सा उसने पायाउभय आग्रही थे स्वविषय में,<br>इतने गयी बात तब न्यायालय में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।सुनी सभी ने जानी।"<br>"लक्ष सिद्धि का मानीसुनी सभी ने जानी! कोमल कठिन व्यापक हुई कहानी।"<br><br>
"माँगा उसने आहत पक्षीराहुल तू निर्णय कर इसका, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,<br>न्याय पक्ष लेता है किसका?तब उसने जो था खगभक्षीकह दे निर्भय जय हो जिसका, हठ करने की ठानी।सुन लूँ तेरी बानी"<br>"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।"<br><br>
हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,<br>गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।"<br>"सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"<br><br> राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?"<br>"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।<br>कोई निरपराध को मारे तो क्यों न अन्य उसे न उबारे?<br>रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"<br>"न्याय दया का दानी! तूने गुणी गुनी कहानी।"<br><br/poem>