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ताज / सुमित्रानंदन पंत

302 bytes added, 07:25, 22 जनवरी 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन पंत; पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत; तारापथ / सुमित्रानंदन पंत
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<poem>
हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन?
जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन!
संग-सौध में हो शृंगार मरण का शोभन,
नग्न, क्षुधातुर, वास-विहीन रहें जीवित जन?
हायमानव! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजनऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?<br>जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग आत्मा का जीवनअपमान, प्रेत औ’ छाया से रति!!<br>संगप्रेम-सौध में हो श्रृंगार अर्चना यही, करें हम मरण का शोभनको वरण? स्थापित कर कंकाल,<br>भरें जीवन का प्रांगण? नग्नशव को दें हम रूप, क्षुधातुर वास विहीन रहें जीवित जनरंग, आदर मानन का मानव को हम कुत्सित चित्र बना दें शव का?<br><br>
गत-युग के बहु धर्म-रूढ़ि के ताज मनोहर मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?<br>मोहांध हृदय में किए हुए घर! आत्मा भूल गये हम जीवन का अपमानसंदेश अनश्वर, प्रेत औ\' छाया से रति!!<br>प्रेम अर्चना यहीमृतकों के हैं मृतक, करें हम मरण को वरण?<br>स्थापति कर कंकाल, भरे जीवन जीवतों का प्रांगण?<br><br>है ईश्वर!
शव को दें हम रंग, आदर मानन का<br>'''रचनाकाल: अक्टूबर’१९३५'''मानव को हम कुत्सित चित्र बना दे शव का?<br>गत युग के मृत आदर्शों के ताज मनोहर<br>मानव के मोहांध हृदय मे किए हुए घर,<br><br> भूल गये हम जीवन का संदेश अनश्वर,<br>मृतकों के है मृतक जीवतों का है ईश्वर!<br><br/poem>
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