Changes

पहली पेंशन /अनामिका

22 bytes added, 09:07, 24 जनवरी 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका
|संग्रह=अनुष्टुप / अनामिका
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
श्रीमती कार्लेकर
अपनी पहली पेंशन लेकर
जब घर लौटीं–
सारी निलम्बित इच्छाएँ
अपना दावा पेश करने लगीं।
जहाँ जो भी टोकरी उठाई
उसके नीचे छोटी चुहियों-सी
दबी-पड़ी दीख गई कितनी इच्छाएँ!
श्रीमती कार्लेकर<br>अपनी पहली पेंशन लेकर<br>जब घर लौटीं–<br>सारी निलम्बित इच्छाएं<br>अपना दावा पेश करने लगीं।<br><br> जहाँ जो भी टोकरी उठाई<br>उसके नीचे छोटी चुहियों-सी<br>दबी-पड़ी दीख गई कितनी इच्छाएं !<br><br> श्रीमती कार्लेकर उलझन में पड़ीं<br>क्या-क्या खरीदेंख़रीदें, किससे कैसे निबटें !<br>सूझा नहीं कुछ तो झाड़न उठाई<br>झाड़ आईं सब टोकरियाँ बाहर<br><br> चूहेदानी में इच्छाएं फंसाईं<br>इच्छाएँ फँसाईं (हुलर-मुलर सारी इच्छाएंइच्छाएँ)<br>और कहा कार्लेकर साहब से–<br>“चलो जराज़रा, गंगा नहा आएं आएँ!” <br><br/poem>
49
edits