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"चौका / अनामिका" के अवतरणों में अंतर

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मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी
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मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।
ज्वालामुखी बेलते हैं पहाड़
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ज्वालामुखी बेलते हैं पहाड़।
भूचाल बेलते हैं घर
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भूचाल बेलते हैं घर।
 
सन्नाटे शब्द बेलते हैं, भाटे समुंदर।   
 
सन्नाटे शब्द बेलते हैं, भाटे समुंदर।   
  
 
रोज़ सुबह सूरज में  
 
रोज़ सुबह सूरज में  
एक नया उचकुन लगाकर  
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एक नया उचकुन लगाकर,
 
एक नई धाह फेंककर  
 
एक नई धाह फेंककर  
 
मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।  
 
मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।  
पृथ्वी– जो खुद एक लोई है  
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पृथ्वी–जो खुद एक लोई है  
 
सूरज के हाथों में  
 
सूरज के हाथों में  
रख दी गई है, पूरी की पूरी ही सामने  
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रख दी गई है, पूरी-की-पूरी ही सामने  
कि लो, इसे बेलो, पकाओ  
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कि लो, इसे बेलो, पकाओ,
 
जैसे मधुमक्खियाँ अपने पंखों की छाँह में  
 
जैसे मधुमक्खियाँ अपने पंखों की छाँह में  
 
पकाती हैं शहद।   
 
पकाती हैं शहद।   
  
सारा शहर चुप है  
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सारा शहर चुप है,
 
धुल चुके हैं सारे चौकों के बर्तन।  
 
धुल चुके हैं सारे चौकों के बर्तन।  
बुझ चुकी है आखिरी चूल्हे की राख भी  
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बुझ चुकी है आख़िरी चूल्हे की राख भी,
 
और मैं  
 
और मैं  
अपने ही वजूद की आंच के आगे  
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अपने ही वजूद की आँच के आगे  
 
औचक हड़बड़ी में  
 
औचक हड़बड़ी में  
खुद को ही सानती  
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खुद को ही सानती,
खुद को ही गूंधती हुई बार-बार  
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खुद को ही गूँधती हुई बार-बार  
 
ख़ुश हूँ कि रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।   
 
ख़ुश हूँ कि रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।   
 
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15:48, 24 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।
ज्वालामुखी बेलते हैं पहाड़।
भूचाल बेलते हैं घर।
सन्नाटे शब्द बेलते हैं, भाटे समुंदर।

रोज़ सुबह सूरज में
एक नया उचकुन लगाकर,
एक नई धाह फेंककर
मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।
पृथ्वी–जो खुद एक लोई है
सूरज के हाथों में
रख दी गई है, पूरी-की-पूरी ही सामने
कि लो, इसे बेलो, पकाओ,
जैसे मधुमक्खियाँ अपने पंखों की छाँह में
पकाती हैं शहद।

सारा शहर चुप है,
धुल चुके हैं सारे चौकों के बर्तन।
बुझ चुकी है आख़िरी चूल्हे की राख भी,
और मैं
अपने ही वजूद की आँच के आगे
औचक हड़बड़ी में
खुद को ही सानती,
खुद को ही गूँधती हुई बार-बार
ख़ुश हूँ कि रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।