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"असहाय / पद्मजा बाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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असहाय बेटे ने, ममता ही तोड़ लिया,
 
असहाय बेटे ने, ममता ही तोड़ लिया,
 
बेबेस दो बूढ़ों को, अपना समझ लिया।
 
बेबेस दो बूढ़ों को, अपना समझ लिया।
 
मेघ बनकर
 
तृषित धरती के कणों को, तृप्त कर दो, मेघ बनकर
 
अग्नि से जलते तनों को, शान्ति दो, तुम प्रेम बनकर,
 
भटकते राही को, गंतव्य दे दो मीत बनकर।
 
कालिमा मिट जाएगी, यदि तुम जलोगे, दीप बनकर,
 
डूबती नौका बचा लो, हाथ का अवलम्ब देकर,
 
छद्म का पर्दा उठा दो, सत्य की प्रतिमूर्ति बनकर,
 
टूटते सम्बन्ध जोड़ो, विश्वास की अनुभूति देकर
 
ज्योति को फिर से जला दो, भावना के अनुरूप बनकर।
 
 
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00:23, 15 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

निरंकुश तानाशाह बाप का निरीह बेटा,
चलता-फिरता निर्जीव पुतला,
बाल्य काल में ही, युवा-सी मुद्राये,
धँसी-सी आँखें, चेहरा तीन कोणों का,
खुशियों का अभाव, हर समय काँव-काँव,
कोरे उपदेशों ने, नाश ही नाश किया,
सर्वगुण के चक्कर ने, अवगुणों में ढाल दिया,
कोमल पंखुड़ियों को, कांटों ने घेर लिया,
सारी आशाओ, पर पानी ही फेर दिया,
असहाय बेटे ने, ममता ही तोड़ लिया,
बेबेस दो बूढ़ों को, अपना समझ लिया।