"सतीश शुक्ला 'रक़ीब' / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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− | '''सतीश शुक्ला 'रक़ीब | + | '''सतीश शुक्ला 'रक़ीब'''' |
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− | + | मूल नाम : सतीशचन्द्र कृपाशंकर शुक्ला | |
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उपनाम : रक़ीब लखनवी | उपनाम : रक़ीब लखनवी | ||
प्रचलित नाम : सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | प्रचलित नाम : सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | ||
जन्म स्थान : लखनऊ , उत्तर प्रदेश , भारत | जन्म स्थान : लखनऊ , उत्तर प्रदेश , भारत | ||
जन्म तिथि : अप्रैल 04 , 1961 | जन्म तिथि : अप्रैल 04 , 1961 | ||
− | पिता : श्री कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ला | + | पिता : (स्व.) श्री कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ला |
− | माता : श्रीमती | + | माता :(स्व.) श्रीमती लक्ष्मीदेवी कृपाशंकर शुक्ला |
− | भाई-बहन :ऊषा, शोभा, सुनील, सुधीर, आशा, शशि, सुशील एवं मंजू | + | भाई - बहन : ऊषा, शोभा, सुनील, सुधीर, आशा, शशि, सुशील एवं मंजू |
पत्नी एवं पुत्री : अनुराधा - सागरिका | पत्नी एवं पुत्री : अनुराधा - सागरिका | ||
− | संपर्क : बी - 204, एक्सेल हाऊस, | + | संपर्क : बी - 204, एक्सेल हाऊस, 13 वां रास्ता, जुहू स्कीम, जुहू, मुंबई - 400049. |
− | + | + 91 98921 65892 / +91 96997 13162 | |
− | + | ||
− | + | sckshukla@rediffmail.com / sckshukla@gmail.com | |
− | + | www.raqeeblucknowi.mumbaipoets.com | |
− | + | www.kavitakosh.org/ssraqeeb | |
+ | www.radiosabrang.com | ||
+ | www.urduhaiiskanaam.com | ||
शिक्षा : एम० ए०, बी० एड०, डी०सी०पी०एस०ए०(कम्प्युटर) | शिक्षा : एम० ए०, बी० एड०, डी०सी०पी०एस०ए०(कम्प्युटर) | ||
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प्रकाशन / प्रसारण | प्रकाशन / प्रसारण | ||
− | + | “आज़ादी” : सहारा इंडिया द्वारा अगस्त 1992 में लखनऊ (उ. प्र.) | |
− | + | “कुछ-कुछ” : आज का आनंद द्वारा सितम्बर 2001 में पूना (महाराष्ट्र) | |
− | + | “मोहब्बत हो अगर पैदा” : आज का आनंद द्वारा अक्टूबर 2001 पूना (महाराष्ट्र) | |
'खाक़ में मिल गए' आज का आनंद द्वारा नवम्बर 2001 पूना (महाराष्ट्र) | 'खाक़ में मिल गए' आज का आनंद द्वारा नवम्बर 2001 पूना (महाराष्ट्र) | ||
− | 'वतन की हिफाज़त' दोपहर का सामना, अगस्त 2011, मुंबई (महाराष्ट्र) | + | 'वतन की हिफाज़त' दोपहर का सामना, अगस्त 2011, मुंबई (महाराष्ट्र) |
'शहीदे वतन का नहीं कोई सानी' हमारा महानगर , अगस्त 2011, मुंबई (महाराष्ट्र) | 'शहीदे वतन का नहीं कोई सानी' हमारा महानगर , अगस्त 2011, मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
− | 'गंगो-जमन की ख़ुशबू है ' अर्बाबे-क़लम : 11/34 अप्रैल - जून 2012 देवास, म.प्र. | + | 'गंगो-जमन की ख़ुशबू है ' अर्बाबे-क़लम : 11 / 34 अप्रैल - जून 2012 देवास, म.प्र. |
− | 'गुज़री है रात कैसे' मुंबई के हिंदी कवि-काव्य संग्रह : जुलाई वर्ष 2012 : मुंबई (महाराष्ट्र) | + | 'गुज़री है रात कैसे' मुंबई के हिंदी कवि - काव्य संग्रह : जुलाई वर्ष 2012 : मुंबई (महाराष्ट्र) |
− | + | "परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ" : अर्बाबे-क़लम : 12 / 35 जुलाई - सितम्बर 2012 देवास, म.प्र. | |
− | 'करमचंद और पुतलीबाई के बेटे थे गाँधी जी' : गाँधी जयंती स्मारिका - 2012 मुंबई (महाराष्ट्र) | + | 'करमचंद और पुतलीबाई के बेटे थे गाँधी जी' : "गाँधी जयंती स्मारिका" - 2012 मुंबई (महाराष्ट्र) |
− | 'मीठे अल्फ़ाज़ की जज़्बात पे बारिश' | + | "परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ" / “हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है : |
− | 'लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने' अदबी दहलीज़ : 1/31 जनवरी-मार्च 2013 सरायमीर,आज़मगढ़ उ प्र | + | "छंद-प्रभा" : ऑनलाइन अंतर्जालीय पत्रिका : संपादक - संजय सरल : जुलाई 2012 : देवास, म.प्र. |
− | 'होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती' अर्बाबे-क़लम : | + | 'मीठे अल्फ़ाज़ की जज़्बात पे बारिश' “: “अर्बाबे-क़लम “ :13/30 अक्टूबर-दिसम्बर 2012 देवास, म.प्र. |
− | ' | + | 'होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती' :"अर्बाबे-क़लम":14/44 जनवरी - मार्च 2013 देवास, म.प्र. |
− | अर्बाबे-क़लम : 14/ | + | 'मुश्किल से महीने नें बचाता है वो जितना // उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती' अंदाज़े-बयाँ उप शीर्षक अर्बाबे-क़लम : 14 / 16 जनवरी - मार्च 2013 देवास, म.प्र. |
+ | 'लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने' : "अदबी दहलीज़":1/31: जनवरी-मार्च 2013:सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र. | ||
+ | 'चाहते हैं अब भुला दें उसको अपने दिल से हम’ – 84 वर्षों से अनवरत प्रकाशित उर्दू का अन्तर्राष्ट्रीय रिसाला -"शायर" मुंबई (उर्दू) पेज 70 वॉल्यूम 57(84) इशू जनवरी - फ़रवरी 2013 - मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | 'परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ'-84 वर्षों से अनवरत प्रकाशित उर्दू का अन्तर्राष्ट्रीय रिसाला -"शायर" मुंबई (उर्दू) पेज 70 वॉल्यूम 57(84) इशू जनवरी - फ़रवरी 2013 - मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | 'होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती' :"ख़याले-शगुफ़्ता": जनवरी-मार्च 2013/26 ग़ाज़ीपुर उ.प्र. | ||
+ | “आप से तुम, तुम से तू कहने लगे' :"संगम":वर्ष-2013:अंक-3 मार्च 2013:पृष्ठ-42:पटियाला (पंजाब) | ||
+ | “हर एक लफ़्ज़ पे वो जाँ निसार करता है” : अर्बाबे-क़लम : 15/35 अप्रैल - जून 2013 : देवास, म.प्र. | ||
+ | “अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद" :“अदबी दहलीज़" : दूसरी महक/ पृष्ठ-27:पत्र प्रकाशित : पृष्ठ–2 : जून 2013 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.) | ||
+ | 'परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ':पृष्ठ-11:द उर्दू टाइम्स:23 जून 2013:मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | "पछताएगा, मज़लूम पे ज़ालिम न जफा कर / क़ुदरत की तो लाठी की सदा तक नहीं आती " : मुख्य पृष्ठ बॉक्स : 26 जून 2013 : डेली उर्दू एक्शन (उर्दू में) : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | "गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिंदी से/मेरे मिजाज़ में उस अंजुमन की खुशबू है" : मुख्य पृष्ठ बॉक्स : 26 जुलाई 2013 : डेली उर्दू एक्शन (उर्दू में) : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | "क्यों ज़ुबां पर मेरी आ गई हैं प्रिये"/"होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" : उजाला-2013 दीपावली विशेषाँक :धमतरी (छ.ग.) : पृष्ठ-123 | ||
+ | “'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद” अर्बाबे-क़लम : 17/30 : अक्टूबर - दिसम्बर 2013 : देवास, म.प्र. | ||
+ | "लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने":ग़ज़ल के बहाने-पुष्प-13:पृष्ठ-123: जवाहर नगर, दिल्ली–7 | ||
+ | “अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद” : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष-5: अंक 19: पृष्ठ-94 अक्टूबर-दिसंबर 2013:भोपाल म.प्र. | ||
+ | "लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने" / "होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती": समकालीन स्पंदन : शरद अंक : अंक - 4 : वर्ष - 2013 : पृष्ठ-22 : पत्रांश- पृष्ठ-4 : वाराणसी उ. प्र. | ||
+ | “अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”/उर्दू एक्शन(उर्दू में):वॉल्यूम नंबर-30:इश्यू-91:नवम्बर 20, 2013: भोपाल(म.प्र.) | ||
+ | “'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद” / पीपुल्स समाचार : शुक्रवार 22 नवंबर, 2013 : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | “'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”/ मेट्रो न्यूज़ : वर्ष - 4 : अंक - 21 : पृष्ठ 8 : दिसम्बर 21, 2013 : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | “'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”/मूनलाईट टाइम्स:वर्ष-आठ:अंक-तीन:पृष्ठ 17:दिसम्बर 2013:भोपाल म.प्र. | ||
+ | "अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" / अभिनव इमरोज़ : वर्ष – 3 : अंक – 18 : फरवरी 2014 : पृष्ठ - 59: वसंत कुंज, नई दिल्ली - 70 | ||
+ | "ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए" / प्रेरणा-अंशु / वर्ष-२७ : अंक - 1 : पृष्ठ - 22 : मार्च 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड. | ||
+ | "आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" /"बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" : मुंबई मित्र ( वृत्त मित्र ) : दैनिक पत्र : मुंबई (महाराष्ट्र) शनिवार 05 अप्रैल 2014. | ||
+ | "अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे":मुंबई मित्र (वृत्त मित्र):दैनिक पत्र:मुंबई (महाराष्ट्र) शनिवार 07 अप्रैल 2014 | ||
+ | “बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे” : “अदबी दहलीज़” : 4/58 अप्रैल-जून 2014 : सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र. | ||
+ | “रख के मेज़ों पे जो भारत का अलम बैठे हैं” : अर्बाबे-क़लम : 19/30 : अप्रैल-जून 2014 : देवास, म.प्र. | ||
+ | “हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है”: रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 6 : अंक – 21 : पृष्ठ – 15 : अप्रैल-जून 2014 :भोपाल म.प्र. | ||
+ | "मैं हूँ तेरी यादें हैं सागर का किनारा है"/"छा जाए घटा जब ज़ुल्फ़ों की":गीत : मुंबई मित्र ( वृत्त मित्र ) : दैनिक पत्र : मुंबई (महाराष्ट्र) : सोमवार 05 मई 2014 | ||
+ | “बताऊँ क्यों अजीब हूँ" / "चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : मुंबई मित्र ( वृत्त मित्र ) : दैनिक पत्र : मुंबई (महाराष्ट्र) 11 जुलाई 2014 | ||
+ | “बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे':" : “अभिनव इमरोज़" : वर्ष-3 : अंक-6 : पृष्ठ-77 : जून 2014 :नई दिल्ली | ||
+ | "आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे" : "छंद-प्रभा" : ऑनलाइन अंतर्जालीय पत्रिका : संपादक - संजय सरल : पृष्ठ-38 : जून-अगस्त 2014 : देवास, म.प्र. | ||
+ | "होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" : प्रेरणा-अंशु : वर्ष - 27 : अंक – 4 : पृष्ठ - 24 : जुलाई 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड. | ||
+ | "आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष - 3 :अंक-7 : जुलाई 2014 : पृष्ठ-53 : नई दिल्ली-70 | ||
+ | “परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ” : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष-6: अंक 32: पृष्ठ-69 : जुलाई-सितम्बर 2014 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | 'आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब' / 'फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं' :"अदबी दहलीज़" : 5 / 18 जुलाई-सितम्बर 2014 सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र. | ||
+ | "मिल जुल के चलो प्यार का संसार बसाएँ / तनहा न बना पाएँगे हम एक मकाँ तक" / ऊँची-उड़ान / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 27 : अंक - 5 : पृष्ठ - 21 : अगस्त 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड. | ||
+ | "काश! इक बार मिल सकूँ उससे" : ग़ज़ल के बहाने - पुष्प-16 : पृष्ठ - 18 : सितंबर - 2014 : जवाहर नगर, दिल्ली | ||
+ | 'बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे' : "प्राची प्रतिभा" : वर्ष - 5 : अंक - 54 : पृष्ठ - 24 : अक्टूबर 2014 लखनऊ उ.प्र. | ||
+ | “बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे"/"लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने":अनुष्का:वर्ष-4:अंक-3:पृष्ठ-25:अक्टूबर 2014:मुम्बई ( महाराष्ट्र ) | ||
+ | "चुप कहाँ रहना कहाँ पर बोलना है" : नई लेखनी : अंक - 7 : पृष्ठ - 31 : जुलाई - दिसम्बर 2014 : बरेली (उ.प्र.) | ||
+ | “बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष - 6: अंक 23: पृष्ठ - 41 : अक्टूबर-दिसम्बर 2014 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" : अदबी दहलीज़ : 2/2/23 अक्टूबर-दिसम्बर 2014 : सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र. | ||
+ | “ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई" / "चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : गीत गागर: :अंक-8 : पृष्ठ- 35 :अक्टूबर-दिसम्बर 2014 : पत्र-पृष्ठ - 09 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 27 : अंक – 8 : पृष्ठ - 23 : दिसंबर 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड. | ||
+ | “सुब्ह नौ के है तू रोशनी भी सनम" / "आँसुओं से अपना दामन तर-बतर होने के बाद" / " बताऊँ क्यों अजीब हूँ" : अभिनव इमरोज़: वर्ष - 4 :अंक - 1 : जनवरी 2015 : पृष्ठ- 25 : नई दिल्ली-70 | ||
+ | "प्रेरणा-अंशु" : वर्ष - 27 : अंक - 9 : पृष्ठ- 5 : जनवरी 2015 : पत्र प्रकाशित : दिनेशपुर, उत्तराखंड. | ||
+ | "आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब":"प्राची प्रतिभा":वर्ष-5:अंक-58:पृष्ठ-24:फरवरी 2015:लखनऊ उ. प्र. | ||
+ | "होटों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती":"प्राची प्रतिभा":वर्ष-5:अंक-59:पृष्ठ-23:पत्र प्रकाशित:पृष्ठ-37:साहित्यिक समाचार के अन्तर्गत, सरस काव्य समारोह:पृष्ठ-40:में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थिति दर्ज़ : मार्च, 2015 : लखनऊ उ. प्र. | ||
+ | "आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे" :"अदबनामा":वर्ष-1:अंक-3:पृष्ठ-59:पत्र प्रकाशित:पृष्ठ-61:जनवरी-मार्च 2015 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र. | ||
+ | “रूह कहते हैं जिसको क्या है वो” : अर्बाबे-क़लम : 22/20 : जनवरी-मार्च 2015 : देवास, म.प्र. | ||
+ | “कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष - 7: अंक 24: पृष्ठ - 70 : जनवरी-मार्च 2015 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" -84 वर्षों से अनवरत प्रकाशित उर्दू का अन्तर्राष्ट्रीय रिसाला -"शायर" मुंबई (उर्दू) पेज 47 वॉल्यूम 59(86) इशू अप्रैल 2015 - मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | 'क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये' : "प्राची प्रतिभा" : वर्ष - 5 : अंक - 60 : पृष्ठ - 34 : अप्रैल 2015 : लखनऊ उ.प्र. | ||
+ | "है आदिकाल से मानव का आचरण मित्रो" : "प्रेरणा" : अंक - 46 / 2015 : पुवायां, शाहजहाँपुर उ.प्र. | ||
+ | "दो सज़ा शौक़ से सज़ा क्या है" : "अनन्तिम" : वर्ष - 6 : अंक - 24 : पृष्ठ - 19 : कानपुर (उ.प्र.) | ||
+ | "हसरते-बोसा-ए-रुख़सार नहीं थी, कि जो है" / "कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" :अदबी दहलीज़: 2/14/62 :अप्रैल-जून 2015:सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र. | ||
+ | “वह सताता है दूर जा-जा कर" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 7 : अंक - 25 : पृष्ठ - 37 : पत्र प्रकाशित : पृष्ठ - 76 : अप्रैल-जून 2015 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" : "साहित्य कलश" : वर्ष - 2 : अंक - 2 : पृष्ठ - 4 : अप्रैल - जून 2015 : पटियाला (पंजाब) | ||
+ | "ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई" : "विधि पताका" : पृष्ठ - 11 : 12 जून 2015 : कानपुर, उ.प्र. | ||
+ | "काश! इक बार मिल सकूँ उससे" "संयोग साहित्य" वर्ष - 18 : अंक - 4 : पृष्ठ - 73 : और ब्रजेश पाठक 'मौन' सम्मान समारोह की रिपोर्ट में काव्य पाठ में सहभागिता दर्ज़ : पृष्ठ - 94 : अक्टूबर - दिसम्बर 2015 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | "जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है / जैसे चेहरा किताब है कोई" / शैल-सूत्र / उपशीर्षक / उड़ते परिन्दे - विनय 'सागर' / वर्ष - 8 : अंक - 2 : पृष्ठ - 52 : अप्रैल - जून 2015 : बिन्दुखत्ता, लालकुआँ, नैनीताल (उत्तराखंड). | ||
+ | “कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" / "ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई" : "सरमाया हिंद" :: वर्ष- 1 : अंक - 6 : पृष्ठ - 19 : जून – 2015 : साहिबाबाद , गाज़ियाबाद, उ.प्र. | ||
+ | "अंजान हैं, इक दूजे से पहचान करेंगे" / "बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" / "क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये" / "रूह कहते हैं जिसको क्या है वो" / "यह हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" / उफ ! मिटा पाए न जिसकी याद अपने दिल से हम" / "हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" / "आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है" / " होटों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" / "दिलों में फिर वो पहली सी, मोहब्बत हो अगर पैदा" / "है आदि काल से मानव का आचरण मित्रो" / "लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने" : "अदबनामा" : वर्ष - 2 : पूर्णांक - 5 : ग़ज़लिस्तां (एक ही शाइर की अनेक ग़ज़लें) : और परिचय : पृष्ठ - 63 से 66 (चार पूर्ण पृष्ठ ) : जुलाई-सितम्बर 2015 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र. | ||
+ | "किनारे अब सड़क के सोएगा कैसे उसे डर है / बड़ी सी क़ीमती गाड़ी कुचल जाए तो क्या होगा" : "कॉलम क़लम के कमाल" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 22 : पृष्ठ - 2 : 26 अगस्त 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "किनारे अब सड़क के सोएगा कैसे उसे डर है / बड़ी सी क़ीमती गाड़ी कुचल जाए तो क्या होगा" : "कॉलम क़लम के कमाल" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 23 : पृष्ठ - 2 : सितम्बर 14, 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "ज़ह्नो दिल में हर इक के उतर जाइए / बन के ख़ुशबू फ़जाँ में बिखर जाइए / गर्दिशे वक़्त ख़ुद ही पशेमान हो / राहे पुरखार से यूं गुजर जाइए" : "बहरे क़त्आत" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक – 24-25 : पृष्ठ - 4 : 4 अक्तूबर 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "ज़माने से न बदला जो बदल जाए तो क्या होगा" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 20 : महफ़िले शायरी : 29 वां अंक : अगस्त 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "आपकी राय में पत्र प्रकाशित" : सरमाया हिंद : वर्ष - 1 : अंक - 8 : पृष्ठ - 5 : अगस्त 2015 : साहिबाबाद, गाज़ियाबाद (उ.प्र.) | ||
+ | "वह सताता है दूर जा जा कर" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : स्वतंत्रता दिवस विशेषांक : वर्ष -17 : अंक - 21 : महफ़िले शायरी : अगस्त 15, 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "पत्रांश शीर्षक के तहत पत्र प्रकाशित" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष - 4 :अंक - 9 : सितम्बर 2015 : पृष्ठ - 86 : नई दिल्ली – 70 | ||
+ | "फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं" / वह सताता है दूर जा जा कर / "संयोग साहित्य" वर्ष - 18 : अंक - 4 : पृष्ठ - 73 : अक्टूबर - दिसम्बर 2015 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | "हर एक लफ़्ज़ पे वो जाँ निसार करता है" : ”अदबी दहलीज़” : वर्ष - 3 : अंक - 2 : पृष्ठ - 32 : अक्टूबर - दिसम्बर 2015 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.) | ||
+ | "सवेरे के सूरज की पहली किरन तू / दिया है मुझे तू ने अपना उजाला / तेरे हुस्न पर शे'र कहता रहूँगा / तेरा हुस्न है हर हसीं से निराला" : "बहरे क़त्आत" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 29 : पृष्ठ - 5 : 15 नवम्बर 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "ज़ह्नो-दिल में हर इक के उतर जाइए" / "क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये : "दृष्टिकोण" सोपान : 18-19 पृष्ठ - | ||
+ | 82 : फ्रैंड्स हेल्पलाइन, कोटा (राजस्थान). | ||
+ | "चुप कहाँ रहना कहाँ पर बोलना है" : "प्रेरणा" चतुर्मासिक : पृष्ठ -12 : अंक -47 : 2015 : पुवायां, शाहजहाँपुर उ.प्र. | ||
+ | “ख़ुशी हो तो घर उनके हम कभी जाया नहीं करते” : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : | ||
+ | वर्ष-17: अंक-28:महफ़िले शायरी:30वाँ अंक: नवंबर 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "अभावों से ग्रसित ये बस्तियाँ हैं" : "नई लेखनी" : अंक - 9 : पृष्ठ - 25 : जुलाई - दिसम्बर 2015 : बरेली (उ.प्र.) | ||
+ | "एक हो जायेंगे इक दिन जहनो-दिल जुड़ जायेंगे / और मुसाफिर अपने-अपने मोड़ पर मुड़ जायेंगे / बालो-पर भीगे हुए हैं, सूख जाने दो जरा / पेड़ पर बैठे परिंदे , खुद-ब-खुद उड़ जायेंगे" : "बहरे क़त्आत" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 32-33: : 27 दिसम्बर 2015 - 3 जनवरी 2016 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | “हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है”: परिधि-14: अंक-14:पृष्ठ-72: हिन्दी-उर्दू मजलिस :सागर (म.प्र.) | ||
+ | 'लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 8 : अंक - 28 : पृष्ठ - 47 : पृष्ठ - 3 : पृष्ठ के अन्त में काली पट्टी पर एक शे'र "अदना सा सिपाही ये कहे बहरे अदब का / बन जाऊँगा सुलतान अभी सीख रहा हूँ" : जनवरी-मार्च 2016 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | “हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है " / "हर एक लफ़्ज़ पे वो जाँ निसार करता है " / " आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष - 5 :अंक - 3 : मार्च 2016 : पृष्ठ- 86 : नई दिल्ली-70 | ||
+ | "बेवफ़ाई का सिला भी जो वफ़ा देते हैं" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 28 : महफ़िले शायरी : 31 वाँ अंक : मार्च 2016 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "न खायी न झूठी क़सम खाएंगे हम / जुदा हो के तुझसे न रह पाएंगे हम // यकीं गर न हो देख लो आज़माकर / बिछड़ने से पहले ही मर जाएंगे हम" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : "मुक्तक-माला" : वर्ष -18 : अंक – 3 - 4 : पृष्ठ – 2 : 14 - 21 मार्च 2016 : फरीदाबाद (हरियाणा) | ||
+ | "आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है"/ : अर्बाबे-क़लम : अंक-26 : पृष्ठ - 20 : वर्ष - 2016 : देवास, म.प्र. | ||
+ | "बदले मौसम बदलें हम" :"प्राची प्रतिभा": वर्ष - 7 :अंक - 73 : पृष्ठ - 20 : मई 2016 : लखनऊ उ.प्र. | ||
+ | "हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है " / "आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है" : रिसाला-ए-इंसानियत : अदबनामा ( क़लमकार ) शीर्षक के तहत पूर्ण पृष्ठ : वर्ष – 8 : अंक - 29 : पृष्ठ - 36 : अप्रैल, मई , जून 2016 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "बदले मौसम बदलें हम" :"माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 10 : नम्बर -117 : पृष्ठ - 44 : जून 2016 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र | ||
+ | "वह सताता है दूर जा जा कर" :"प्राची प्रतिभा": वर्ष-7 :अंक-74 : पृष्ठ-35 : जून 2016 : लखनऊ उ.प्र. | ||
+ | "बदले मौसम बदलें हम" :"माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 7 : इशू -2 : पृष्ठ - 8 : जुलाई 2016 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.) | ||
+ | "उसी के वास्ते रब ने बनाई हैं जन्नत / जो नेक़ काम यहाँ बेशुमार करता है" / ऊँची-उड़ान / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 29 : अंक - 4 : पृष्ठ - 21 : जून 2016 : दिनेशपुर, उत्तराखंड. | ||
+ | “बिजलियों सी चमक है तेरी" / "बताऊँ क्यों अजीब हूँ" / "बदले मौसम बदलें हम" / "काश ! इक बार मिल सकूँ उससे" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष-5 : अंक-7 : जुलाई 2016 : पृष्ठ-57 : नई दिल्ली – 70. | ||
+ | "डॉ कुमार प्रजापति विशेषांक" में "सोच की तीलियाँ" प्राप्त होने पर लिखा गया व्यक्तिगत पत्र प्रकाशित : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 8 : अंक - 30 : पृष्ठ - 46 : जुलाई - सितंबर 2016 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "बदले मौसम, बदलें हम" : "अदबनामा" : वर्ष - 3 : अंक - 1 : पूर्णांक - 9 : पृष्ठ - 71 : | ||
+ | जुलाई-सितम्बर 2016 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र. | ||
+ | "आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 29 : अंक - 5 : पृष्ठ - 25 : पत्र प्रकाशित : पृष्ठ - 05 : जुलाई 2016 : दिनेशपुर, उत्तराखंड. | ||
+ | "चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : "साहित्य कलश" : वर्ष - 3 : अंक - 10 : पृष्ठ - 06 : पत्र प्रकाशित : पृष्ठ - 48 : जुलाई-सितंबर 2016 : पटियाला (पंजाब) | ||
+ | "आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" / "वह सताता है दूर जा जा कर" : गीत गागर : अंक - 15 : पृष्ठ - 35 : पत्र प्रकाशित पृष्ठ - 10 : जुलाई - सितंबर 2016 भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | "है आदि काल से मानव का आचरण मित्रो" : सार्थक - 2016 : संपादक - मधुकर गौड़ : वर्ष - 30 : पृष्ठ - 22 : अक्तूबर- नवम्बर 2016 : कांदिवली (प), मुंबई - 400067 . | ||
+ | "पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है" : ”अदबी दहलीज़” : पृष्ठ - 13 : जुलाई - सितंबर 2016 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.) | ||
+ | "बदले मौसम, बदलें हम" / "संयोग साहित्य" वर्ष - 19 : अंक - 3-4 : पृष्ठ - 104 : जुलाई-दिसम्बर 2016 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | "हसरते बोसाए रुख़सार, नहीं थी कि जो है" :"माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 12 : इशू -2 : पृष्ठ - 14 : दिसंबर 2016 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.) | ||
+ | "उफ़ ! मिटा पाए न उसकी याद अपने दिल से हम" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 8 : अंक - 31 : पृष्ठ - 50 : अक्टूबर-दिसंबर 2016 : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | "अनल में प्रीत की जलने दिया कब" :"नई लेखनी":अंक-11:पृष्ठ-21:जुलाई-दिसम्बर 2016 : बरेली (उ.प्र.) | ||
+ | “परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ” : "आलमी अनवार-ए-तख़लीक़" : उर्दू में : वॉल्यूम - 01 : इशू - 01 : पृष्ठ - 69 : जनवरी 2017 : हिन्दपीरी, रांची (झारखण्ड) | ||
+ | "रूह कहते हैं जिसको क्या है वो" : "माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 3 : इशू -1 : पृष्ठ - 18 : जनवरी 2017 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.) | ||
+ | "हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" : माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 11 : नम्बर -125 : पृष्ठ - 36 : फ़रवरी 2017 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र | ||
+ | "ये हक़ीक़त के ख़्वाब है कोई" : "माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 3 : इशू -3 : पृष्ठ - 14 : मार्च 2017 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.) | ||
+ | "बताऊँ क्यों अजीब हूँ" : "लारैब" (उर्दू) :वॉल्यूम - 29: नंबर-3 : पृष्ठ - 41: मार्च 2017: लखनऊ (उ.प्र.) | ||
+ | "तज़करा है तिरा मिसालों में":अभिनव इमरोज़ :वर्ष-6 :अंक-3 : मार्च 2017: पृष्ठ-11 : नई दिल्ली – 70 | ||
+ | "चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : "साहित्य कलश" : वर्ष - 3 : अंक - 12 : पृष्ठ - 04 : जनवरी -मार्च 2017 : पटियाला (पंजाब) | ||
+ | "समीक्षा - थिरक उठी है ग़ज़ल" : शायर - वी. सी. राय 'नया' / : अर्बाबे-क़लम : अंक-30 : पृष्ठ - 38 : जनवरी - मार्च 2017 : देवास, म.प्र. | ||
+ | "ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइये" / "गुज़री है रात कैसे सब से कहेंगी आँखें": समकालीन स्पंदन : वर्ष - 01 : अंक - 02 : 37 : जनवरी - मार्च 2017 : वाराणसी उ. प्र. | ||
+ | "बदले मौसम, बदलें हम" : "माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 7 : इशू -2 : पृष्ठ - 8 : अप्रैल 2017 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.) | ||
+ | "ये हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" : माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 11 : नम्बर -127 : पृष्ठ - 47 : अप्रैल 2017 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र | ||
+ | "साहित्य और देश प्रेम की अनुपम मिसाल - ऊषा भदौरिया 'ऊषा' : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 9 : अंक - 33 : पृष्ठ - 52 -53 : अप्रैल - जून 2017 : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | "ये हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" : मन्थली उर्दू मेला (उर्दू) : इशू - 96 : पृष्ठ-44 : मार्च-अप्रैल 2017 : नागपुर (महाराष्ट्र) | ||
+ | "उर्दू है मेरी जान ! अभी सीख रहा हूँ" / "दास्ताँ सुनो यारो लामकान मकीनों की" : अर्बाबे-क़लम : अंक-31 : पृष्ठ - 21 : अप्रैल-जून-2017 : देवास, म.प्र. | ||
+ | "समीक्षा - थिरक उठी है ग़ज़ल" : शायर - वी. सी. राय 'नया' / : अदबी देहलीज़ : अंक-31 : पृष्ठ - *** : अप्रैल - जून 2017 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.) | ||
+ | "वो सताता है दूर जा जा कर" : माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 11 : नम्बर -129 : पृष्ठ - 52 : जून 2017 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र | ||
+ | "आंसुओं से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”" : "लारैब" (उर्दू) :वॉल्यूम - 29: नंबर-6 : पृष्ठ - 39: जून 2017: लखनऊ (उ.प्र.) | ||
+ | "अंतिम अभिलाषा" पूज्य पिताजी इंजी. कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ल की रचना : अभिनव इमरोज़ :वर्ष-6 :अंक-7 : जुलाई 2017: पृष्ठ- 40 : नई दिल्ली – 70. | ||
+ | "दास्ताँ सुनो यारो लामकान मकीनों की" : अभिनव इमरोज़ :वर्ष-6 :अंक-8 :पृष्ठ - 47 (पिछला अंदरूनी कवर पेज) अगस्त 2017: पृष्ठ-17 : नई दिल्ली – 70 | ||
+ | "बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" : "लारैब" (उर्दू) :वॉल्यूम - 29: नंबर-8 : पृष्ठ - 40: अगस्त 2017: लखनऊ (उ.प्र.) | ||
+ | "ये हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" / "फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं" / "हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" : ग़ैर मुस्लिम ग़ज़लगो (उर्दू में) : अगस्त 2017 : हालात पृष्ठ 137 और तीन ग़ज़लें पृष्ठ 108/109/110 : बालापुर, अकोला, महाराष्ट्र. | ||
+ | "उर्दू है मेरी जान ! अभी सीख रहा हूँ" / "दास्ताँ सुनो यारो लामकान मकीनों की" : अदबी दहलीज़” : पृष्ठ - 17 : पृष्ठ - 5 "गौहरे-पारीना में पूज्य पिताजी इंजी. कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ल की एक रचना "अंतिम अभिलाषा" जुलाई-सितंबर 2017 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.) | ||
+ | "आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है" : अभिनव इमरोज़ :वर्ष - 6 : अंक - 9 : सितम्बर 2017: पृष्ठ-17 : नई दिल्ली–70 | ||
+ | "क्यों ज़ुबां पर मेरी आ गई हैं प्रिये"/"होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" : प्रखर समाचार : पृष्ठ - 7 : शनिवार, 09.09.2017 : धमतरी (छ.ग.) | ||
+ | "उर्दू है मेरी जान ! अभी सीख रहा हूँ" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 9 : अंक - 35 : पृष्ठ - 68 : अक्टूबर - दिसम्बर - 2017 : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | पूज्य पिताजी इंजी. कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ल की एक रचना "अंतिम अभिलाषा" : "प्रेरणा" चतुर्मासिक : पृष्ठ -16 : अंक -51 : 2017 : पुवायां, शाहजहाँपुर उ.प्र. | ||
+ | "कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" / "संयोग साहित्य" वर्ष - 20 : अंक - 3-4 : पृष्ठ - 53 : जुलाई-दिसम्बर (संयुक्तांक) 2017 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | "दास्ताँ सुनो यारो लामकां मकीनों की" : "अदबनामा" : वर्ष - 4 : अंक - 3 : पूर्णांक - 15 : पृष्ठ - 64 : जनवरी-मार्च 2018 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र. | ||
+ | “फिर से शहनाइयां शामियाने में हैं" / "अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" : गीत गागर: :अंक-22 : पृष्ठ- 27 : अप्रैल - जून 2018 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "दिलों में फिर वो पहली सी मोहब्बत हो अगर पैदा" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 10 : अंक - 37 : पृष्ठ - 69 : अप्रैल - जून 2018 : भोपाल (म.प्र.) | ||
+ | "आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" / उर्दू मासिक "नया दौर" (उर्दू) / वर्ष - 73 : अंक - 4 : पृष्ठ - 76 :अगस्त 2018 : सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, लखनऊ (उ.प्र.) | ||
+ | "तेरे द्वारे आऊं माँ" / "माँ यशोदा का जो दुलारा था" / "लामकाँ मकीनों की, सूफियों की पीरों की" : उजाला 2018 : प्रखर समाचार : पृष्ठ - 32 : धमतरी (छ.ग.) | ||
+ | “साहित्य सरोवर में बौध्दिक स्नान करने जैसा" : पत्र प्रकाशित : गीत गागर: :अंक-25 : पृष्ठ- 09 : जनवरी - मार्च 2019 : भोपाल म.प्र. | ||
+ | "अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष–11 : अंक - 40 : पृष्ठ - 59 : जनवरी - मार्च 2019 : भोपाल (म.प्र.) | ||
− | आकाशवाणी | + | आकाशवाणी-प्रसार भारती मुंबई के सम्वाहिका चैनल से रचनाओं/काव्यपाठ का प्रसारण-नवम्बर 2012 |
पुरस्कार, सम्मान एवं सहभागिता | पुरस्कार, सम्मान एवं सहभागिता | ||
− | मुंबई, पुणे, लखनऊ एवं | + | |
− | गोष्ठियों में शिरकत | + | मुंबई, देहली, भोपाल, पुणे, लखनऊ एवं कानपुर में 400 से अधिक मुशायरों, नाशिस्तों, कवि सम्मेलनों और काव्य गोष्ठियों में शिरकत |
मुंबई की सामजिक एवं साहित्यिक संस्था आशीर्वाद द्वारा विशेष सम्मान मई 2008 | मुंबई की सामजिक एवं साहित्यिक संस्था आशीर्वाद द्वारा विशेष सम्मान मई 2008 | ||
मुंबई में सम्पन्न 24 घंटे के अखंड काव्य अनुष्ठान में सहभागिता और सम्मान पत्र अक्टूबर 2012 | मुंबई में सम्पन्न 24 घंटे के अखंड काव्य अनुष्ठान में सहभागिता और सम्मान पत्र अक्टूबर 2012 | ||
− | अंजुमन फ़रोग-ए-उर्दू द्वारा दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय ग़ज़ल गोष्ठी "ग़ज़ल उत्सव" | + | अंजुमन फ़रोग-ए-उर्दू द्वारा दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय ग़ज़ल गोष्ठी "ग़ज़ल उत्सव" में शिरकत और स्मृति चिन्ह : जनवरी 2013. |
− | में शिरकत और | + | ख़्वाहिश फाउंडेशन (रजि.) कानपुर द्वारा आयोजित "महफ़िल-ए-सुख़न" में शाल एवं स्मृति चिन्ह द्वारा विशेष सम्मान, आयोजक - श्री महेश मिश्रा एवं श्रीमती अलका मिश्रा - 24 मई 2015. |
+ | निर्माता / निर्देशक म ना नरहरी जी द्वारा निर्मित 40 रचनाकारों के सामूहिक वीडियो एलबम "दस्तावेज़" में सहभागिता : लोकार्पण दिनांक 03.03.2013 - मुंबई (महाराष्ट्र) | ||
+ | संस्कृति संगम (रजि.) : जोशी बाग़ , कल्याण (महाराष्ट्र) द्वारा आयोजित "हिंदी-उर्दू कवि सम्मलेन - मुशायरा" में पुष्प गुच्छ, शाल एवं स्मृति चिन्ह द्वारा सम्मानित आयोजक - श्री विजय पंडित साहिब एवं श्री अफ़सर दखनी साहिब : 25 दिसम्बर 2016. | ||
+ | अंजुमन फ़रोग-ए-उर्दू द्वारा दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय ग़ज़ल गोष्ठी "ग़ज़ल उत्सव" में शिरकत और स्मृति चिन्ह : जनवरी 2018. | ||
+ | अनुबन्ध फाउंडेशन (संस्थापक श्री प्रमोद कुमार कुश 'तनहा' साहिब) द्वारा आयोजित प्रथम अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह जो दिनांक 10 मार्च 2019 मराठी ग्रंथ संग्रहालय, ठाणे, महाराष्ट्र में संपन्न हुआ में स्मृति चिन्ह और शाल सहित विशेष सम्मान. | ||
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08:48, 4 मार्च 2020 के समय का अवतरण
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
मूल नाम : सतीशचन्द्र कृपाशंकर शुक्ला
उपनाम : रक़ीब लखनवी
प्रचलित नाम : सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
जन्म स्थान : लखनऊ , उत्तर प्रदेश , भारत
जन्म तिथि : अप्रैल 04 , 1961
पिता : (स्व.) श्री कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ला
माता :(स्व.) श्रीमती लक्ष्मीदेवी कृपाशंकर शुक्ला
भाई - बहन : ऊषा, शोभा, सुनील, सुधीर, आशा, शशि, सुशील एवं मंजू
पत्नी एवं पुत्री : अनुराधा - सागरिका
संपर्क : बी - 204, एक्सेल हाऊस, 13 वां रास्ता, जुहू स्कीम, जुहू, मुंबई - 400049.
+ 91 98921 65892 / +91 96997 13162
sckshukla@rediffmail.com / sckshukla@gmail.com
www.raqeeblucknowi.mumbaipoets.com
www.kavitakosh.org/ssraqeeb
www.radiosabrang.com
www.urduhaiiskanaam.com
शिक्षा : एम० ए०, बी० एड०, डी०सी०पी०एस०ए०(कम्प्युटर)
वर्तमान सम्प्रति : इस्कॉन, मुंबई में सहायक प्रबंधक
प्रकाशन / प्रसारण
“आज़ादी” : सहारा इंडिया द्वारा अगस्त 1992 में लखनऊ (उ. प्र.)
“कुछ-कुछ” : आज का आनंद द्वारा सितम्बर 2001 में पूना (महाराष्ट्र)
“मोहब्बत हो अगर पैदा” : आज का आनंद द्वारा अक्टूबर 2001 पूना (महाराष्ट्र)
'खाक़ में मिल गए' आज का आनंद द्वारा नवम्बर 2001 पूना (महाराष्ट्र)
'वतन की हिफाज़त' दोपहर का सामना, अगस्त 2011, मुंबई (महाराष्ट्र)
'शहीदे वतन का नहीं कोई सानी' हमारा महानगर , अगस्त 2011, मुंबई (महाराष्ट्र)
'गंगो-जमन की ख़ुशबू है ' अर्बाबे-क़लम : 11 / 34 अप्रैल - जून 2012 देवास, म.प्र.
'गुज़री है रात कैसे' मुंबई के हिंदी कवि - काव्य संग्रह : जुलाई वर्ष 2012 : मुंबई (महाराष्ट्र)
"परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ" : अर्बाबे-क़लम : 12 / 35 जुलाई - सितम्बर 2012 देवास, म.प्र.
'करमचंद और पुतलीबाई के बेटे थे गाँधी जी' : "गाँधी जयंती स्मारिका" - 2012 मुंबई (महाराष्ट्र)
"परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ" / “हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है :
"छंद-प्रभा" : ऑनलाइन अंतर्जालीय पत्रिका : संपादक - संजय सरल : जुलाई 2012 : देवास, म.प्र.
'मीठे अल्फ़ाज़ की जज़्बात पे बारिश' “: “अर्बाबे-क़लम “ :13/30 अक्टूबर-दिसम्बर 2012 देवास, म.प्र.
'होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती' :"अर्बाबे-क़लम":14/44 जनवरी - मार्च 2013 देवास, म.प्र.
'मुश्किल से महीने नें बचाता है वो जितना // उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती' अंदाज़े-बयाँ उप शीर्षक अर्बाबे-क़लम : 14 / 16 जनवरी - मार्च 2013 देवास, म.प्र.
'लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने' : "अदबी दहलीज़":1/31: जनवरी-मार्च 2013:सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र.
'चाहते हैं अब भुला दें उसको अपने दिल से हम’ – 84 वर्षों से अनवरत प्रकाशित उर्दू का अन्तर्राष्ट्रीय रिसाला -"शायर" मुंबई (उर्दू) पेज 70 वॉल्यूम 57(84) इशू जनवरी - फ़रवरी 2013 - मुंबई (महाराष्ट्र)
'परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ'-84 वर्षों से अनवरत प्रकाशित उर्दू का अन्तर्राष्ट्रीय रिसाला -"शायर" मुंबई (उर्दू) पेज 70 वॉल्यूम 57(84) इशू जनवरी - फ़रवरी 2013 - मुंबई (महाराष्ट्र)
'होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती' :"ख़याले-शगुफ़्ता": जनवरी-मार्च 2013/26 ग़ाज़ीपुर उ.प्र.
“आप से तुम, तुम से तू कहने लगे' :"संगम":वर्ष-2013:अंक-3 मार्च 2013:पृष्ठ-42:पटियाला (पंजाब)
“हर एक लफ़्ज़ पे वो जाँ निसार करता है” : अर्बाबे-क़लम : 15/35 अप्रैल - जून 2013 : देवास, म.प्र.
“अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद" :“अदबी दहलीज़" : दूसरी महक/ पृष्ठ-27:पत्र प्रकाशित : पृष्ठ–2 : जून 2013 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.)
'परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ':पृष्ठ-11:द उर्दू टाइम्स:23 जून 2013:मुंबई (महाराष्ट्र)
"पछताएगा, मज़लूम पे ज़ालिम न जफा कर / क़ुदरत की तो लाठी की सदा तक नहीं आती " : मुख्य पृष्ठ बॉक्स : 26 जून 2013 : डेली उर्दू एक्शन (उर्दू में) : भोपाल (म.प्र.)
"गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिंदी से/मेरे मिजाज़ में उस अंजुमन की खुशबू है" : मुख्य पृष्ठ बॉक्स : 26 जुलाई 2013 : डेली उर्दू एक्शन (उर्दू में) : भोपाल (म.प्र.)
"क्यों ज़ुबां पर मेरी आ गई हैं प्रिये"/"होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" : उजाला-2013 दीपावली विशेषाँक :धमतरी (छ.ग.) : पृष्ठ-123
“'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद” अर्बाबे-क़लम : 17/30 : अक्टूबर - दिसम्बर 2013 : देवास, म.प्र.
"लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने":ग़ज़ल के बहाने-पुष्प-13:पृष्ठ-123: जवाहर नगर, दिल्ली–7
“अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद” : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष-5: अंक 19: पृष्ठ-94 अक्टूबर-दिसंबर 2013:भोपाल म.प्र.
"लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने" / "होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती": समकालीन स्पंदन : शरद अंक : अंक - 4 : वर्ष - 2013 : पृष्ठ-22 : पत्रांश- पृष्ठ-4 : वाराणसी उ. प्र.
“अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”/उर्दू एक्शन(उर्दू में):वॉल्यूम नंबर-30:इश्यू-91:नवम्बर 20, 2013: भोपाल(म.प्र.)
“'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद” / पीपुल्स समाचार : शुक्रवार 22 नवंबर, 2013 : भोपाल (म.प्र.)
“'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”/ मेट्रो न्यूज़ : वर्ष - 4 : अंक - 21 : पृष्ठ 8 : दिसम्बर 21, 2013 : भोपाल (म.प्र.)
“'अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”/मूनलाईट टाइम्स:वर्ष-आठ:अंक-तीन:पृष्ठ 17:दिसम्बर 2013:भोपाल म.प्र.
"अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" / अभिनव इमरोज़ : वर्ष – 3 : अंक – 18 : फरवरी 2014 : पृष्ठ - 59: वसंत कुंज, नई दिल्ली - 70
"ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए" / प्रेरणा-अंशु / वर्ष-२७ : अंक - 1 : पृष्ठ - 22 : मार्च 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड.
"आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" /"बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" : मुंबई मित्र ( वृत्त मित्र ) : दैनिक पत्र : मुंबई (महाराष्ट्र) शनिवार 05 अप्रैल 2014.
"अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे":मुंबई मित्र (वृत्त मित्र):दैनिक पत्र:मुंबई (महाराष्ट्र) शनिवार 07 अप्रैल 2014
“बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे” : “अदबी दहलीज़” : 4/58 अप्रैल-जून 2014 : सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र.
“रख के मेज़ों पे जो भारत का अलम बैठे हैं” : अर्बाबे-क़लम : 19/30 : अप्रैल-जून 2014 : देवास, म.प्र.
“हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है”: रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 6 : अंक – 21 : पृष्ठ – 15 : अप्रैल-जून 2014 :भोपाल म.प्र.
"मैं हूँ तेरी यादें हैं सागर का किनारा है"/"छा जाए घटा जब ज़ुल्फ़ों की":गीत : मुंबई मित्र ( वृत्त मित्र ) : दैनिक पत्र : मुंबई (महाराष्ट्र) : सोमवार 05 मई 2014
“बताऊँ क्यों अजीब हूँ" / "चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : मुंबई मित्र ( वृत्त मित्र ) : दैनिक पत्र : मुंबई (महाराष्ट्र) 11 जुलाई 2014
“बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे':" : “अभिनव इमरोज़" : वर्ष-3 : अंक-6 : पृष्ठ-77 : जून 2014 :नई दिल्ली
"आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे" : "छंद-प्रभा" : ऑनलाइन अंतर्जालीय पत्रिका : संपादक - संजय सरल : पृष्ठ-38 : जून-अगस्त 2014 : देवास, म.प्र.
"होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" : प्रेरणा-अंशु : वर्ष - 27 : अंक – 4 : पृष्ठ - 24 : जुलाई 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड.
"आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष - 3 :अंक-7 : जुलाई 2014 : पृष्ठ-53 : नई दिल्ली-70
“परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ” : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष-6: अंक 32: पृष्ठ-69 : जुलाई-सितम्बर 2014 : भोपाल म.प्र.
'आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब' / 'फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं' :"अदबी दहलीज़" : 5 / 18 जुलाई-सितम्बर 2014 सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र.
"मिल जुल के चलो प्यार का संसार बसाएँ / तनहा न बना पाएँगे हम एक मकाँ तक" / ऊँची-उड़ान / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 27 : अंक - 5 : पृष्ठ - 21 : अगस्त 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड.
"काश! इक बार मिल सकूँ उससे" : ग़ज़ल के बहाने - पुष्प-16 : पृष्ठ - 18 : सितंबर - 2014 : जवाहर नगर, दिल्ली
'बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे' : "प्राची प्रतिभा" : वर्ष - 5 : अंक - 54 : पृष्ठ - 24 : अक्टूबर 2014 लखनऊ उ.प्र.
“बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे"/"लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने":अनुष्का:वर्ष-4:अंक-3:पृष्ठ-25:अक्टूबर 2014:मुम्बई ( महाराष्ट्र )
"चुप कहाँ रहना कहाँ पर बोलना है" : नई लेखनी : अंक - 7 : पृष्ठ - 31 : जुलाई - दिसम्बर 2014 : बरेली (उ.प्र.)
“बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष - 6: अंक 23: पृष्ठ - 41 : अक्टूबर-दिसम्बर 2014 : भोपाल म.प्र.
"अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" : अदबी दहलीज़ : 2/2/23 अक्टूबर-दिसम्बर 2014 : सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र.
“ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई" / "चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : गीत गागर: :अंक-8 : पृष्ठ- 35 :अक्टूबर-दिसम्बर 2014 : पत्र-पृष्ठ - 09 : भोपाल म.प्र.
"अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 27 : अंक – 8 : पृष्ठ - 23 : दिसंबर 2014 : दिनेशपुर, उत्तराखंड.
“सुब्ह नौ के है तू रोशनी भी सनम" / "आँसुओं से अपना दामन तर-बतर होने के बाद" / " बताऊँ क्यों अजीब हूँ" : अभिनव इमरोज़: वर्ष - 4 :अंक - 1 : जनवरी 2015 : पृष्ठ- 25 : नई दिल्ली-70
"प्रेरणा-अंशु" : वर्ष - 27 : अंक - 9 : पृष्ठ- 5 : जनवरी 2015 : पत्र प्रकाशित : दिनेशपुर, उत्तराखंड.
"आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब":"प्राची प्रतिभा":वर्ष-5:अंक-58:पृष्ठ-24:फरवरी 2015:लखनऊ उ. प्र.
"होटों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती":"प्राची प्रतिभा":वर्ष-5:अंक-59:पृष्ठ-23:पत्र प्रकाशित:पृष्ठ-37:साहित्यिक समाचार के अन्तर्गत, सरस काव्य समारोह:पृष्ठ-40:में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थिति दर्ज़ : मार्च, 2015 : लखनऊ उ. प्र.
"आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे" :"अदबनामा":वर्ष-1:अंक-3:पृष्ठ-59:पत्र प्रकाशित:पृष्ठ-61:जनवरी-मार्च 2015 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र.
“रूह कहते हैं जिसको क्या है वो” : अर्बाबे-क़लम : 22/20 : जनवरी-मार्च 2015 : देवास, म.प्र.
“कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष - 7: अंक 24: पृष्ठ - 70 : जनवरी-मार्च 2015 : भोपाल म.प्र.
"हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" -84 वर्षों से अनवरत प्रकाशित उर्दू का अन्तर्राष्ट्रीय रिसाला -"शायर" मुंबई (उर्दू) पेज 47 वॉल्यूम 59(86) इशू अप्रैल 2015 - मुंबई (महाराष्ट्र)
'क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये' : "प्राची प्रतिभा" : वर्ष - 5 : अंक - 60 : पृष्ठ - 34 : अप्रैल 2015 : लखनऊ उ.प्र.
"है आदिकाल से मानव का आचरण मित्रो" : "प्रेरणा" : अंक - 46 / 2015 : पुवायां, शाहजहाँपुर उ.प्र.
"दो सज़ा शौक़ से सज़ा क्या है" : "अनन्तिम" : वर्ष - 6 : अंक - 24 : पृष्ठ - 19 : कानपुर (उ.प्र.)
"हसरते-बोसा-ए-रुख़सार नहीं थी, कि जो है" / "कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" :अदबी दहलीज़: 2/14/62 :अप्रैल-जून 2015:सरायमीर, आज़मगढ़ उ.प्र.
“वह सताता है दूर जा-जा कर" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 7 : अंक - 25 : पृष्ठ - 37 : पत्र प्रकाशित : पृष्ठ - 76 : अप्रैल-जून 2015 : भोपाल म.प्र.
"कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" : "साहित्य कलश" : वर्ष - 2 : अंक - 2 : पृष्ठ - 4 : अप्रैल - जून 2015 : पटियाला (पंजाब)
"ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई" : "विधि पताका" : पृष्ठ - 11 : 12 जून 2015 : कानपुर, उ.प्र.
"काश! इक बार मिल सकूँ उससे" "संयोग साहित्य" वर्ष - 18 : अंक - 4 : पृष्ठ - 73 : और ब्रजेश पाठक 'मौन' सम्मान समारोह की रिपोर्ट में काव्य पाठ में सहभागिता दर्ज़ : पृष्ठ - 94 : अक्टूबर - दिसम्बर 2015 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र)
"जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है / जैसे चेहरा किताब है कोई" / शैल-सूत्र / उपशीर्षक / उड़ते परिन्दे - विनय 'सागर' / वर्ष - 8 : अंक - 2 : पृष्ठ - 52 : अप्रैल - जून 2015 : बिन्दुखत्ता, लालकुआँ, नैनीताल (उत्तराखंड).
“कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" / "ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई" : "सरमाया हिंद" :: वर्ष- 1 : अंक - 6 : पृष्ठ - 19 : जून – 2015 : साहिबाबाद , गाज़ियाबाद, उ.प्र.
"अंजान हैं, इक दूजे से पहचान करेंगे" / "बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" / "क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये" / "रूह कहते हैं जिसको क्या है वो" / "यह हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" / उफ ! मिटा पाए न जिसकी याद अपने दिल से हम" / "हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" / "आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है" / " होटों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" / "दिलों में फिर वो पहली सी, मोहब्बत हो अगर पैदा" / "है आदि काल से मानव का आचरण मित्रो" / "लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने" : "अदबनामा" : वर्ष - 2 : पूर्णांक - 5 : ग़ज़लिस्तां (एक ही शाइर की अनेक ग़ज़लें) : और परिचय : पृष्ठ - 63 से 66 (चार पूर्ण पृष्ठ ) : जुलाई-सितम्बर 2015 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र.
"किनारे अब सड़क के सोएगा कैसे उसे डर है / बड़ी सी क़ीमती गाड़ी कुचल जाए तो क्या होगा" : "कॉलम क़लम के कमाल" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 22 : पृष्ठ - 2 : 26 अगस्त 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"किनारे अब सड़क के सोएगा कैसे उसे डर है / बड़ी सी क़ीमती गाड़ी कुचल जाए तो क्या होगा" : "कॉलम क़लम के कमाल" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 23 : पृष्ठ - 2 : सितम्बर 14, 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"ज़ह्नो दिल में हर इक के उतर जाइए / बन के ख़ुशबू फ़जाँ में बिखर जाइए / गर्दिशे वक़्त ख़ुद ही पशेमान हो / राहे पुरखार से यूं गुजर जाइए" : "बहरे क़त्आत" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक – 24-25 : पृष्ठ - 4 : 4 अक्तूबर 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"ज़माने से न बदला जो बदल जाए तो क्या होगा" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 20 : महफ़िले शायरी : 29 वां अंक : अगस्त 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"आपकी राय में पत्र प्रकाशित" : सरमाया हिंद : वर्ष - 1 : अंक - 8 : पृष्ठ - 5 : अगस्त 2015 : साहिबाबाद, गाज़ियाबाद (उ.प्र.)
"वह सताता है दूर जा जा कर" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : स्वतंत्रता दिवस विशेषांक : वर्ष -17 : अंक - 21 : महफ़िले शायरी : अगस्त 15, 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"पत्रांश शीर्षक के तहत पत्र प्रकाशित" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष - 4 :अंक - 9 : सितम्बर 2015 : पृष्ठ - 86 : नई दिल्ली – 70
"फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं" / वह सताता है दूर जा जा कर / "संयोग साहित्य" वर्ष - 18 : अंक - 4 : पृष्ठ - 73 : अक्टूबर - दिसम्बर 2015 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र)
"हर एक लफ़्ज़ पे वो जाँ निसार करता है" : ”अदबी दहलीज़” : वर्ष - 3 : अंक - 2 : पृष्ठ - 32 : अक्टूबर - दिसम्बर 2015 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.)
"सवेरे के सूरज की पहली किरन तू / दिया है मुझे तू ने अपना उजाला / तेरे हुस्न पर शे'र कहता रहूँगा / तेरा हुस्न है हर हसीं से निराला" : "बहरे क़त्आत" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 29 : पृष्ठ - 5 : 15 नवम्बर 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"ज़ह्नो-दिल में हर इक के उतर जाइए" / "क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये : "दृष्टिकोण" सोपान : 18-19 पृष्ठ -
82 : फ्रैंड्स हेल्पलाइन, कोटा (राजस्थान).
"चुप कहाँ रहना कहाँ पर बोलना है" : "प्रेरणा" चतुर्मासिक : पृष्ठ -12 : अंक -47 : 2015 : पुवायां, शाहजहाँपुर उ.प्र.
“ख़ुशी हो तो घर उनके हम कभी जाया नहीं करते” : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" :
वर्ष-17: अंक-28:महफ़िले शायरी:30वाँ अंक: नवंबर 2015 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"अभावों से ग्रसित ये बस्तियाँ हैं" : "नई लेखनी" : अंक - 9 : पृष्ठ - 25 : जुलाई - दिसम्बर 2015 : बरेली (उ.प्र.)
"एक हो जायेंगे इक दिन जहनो-दिल जुड़ जायेंगे / और मुसाफिर अपने-अपने मोड़ पर मुड़ जायेंगे / बालो-पर भीगे हुए हैं, सूख जाने दो जरा / पेड़ पर बैठे परिंदे , खुद-ब-खुद उड़ जायेंगे" : "बहरे क़त्आत" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 32-33: : 27 दिसम्बर 2015 - 3 जनवरी 2016 : फरीदाबाद (हरियाणा)
“हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है”: परिधि-14: अंक-14:पृष्ठ-72: हिन्दी-उर्दू मजलिस :सागर (म.प्र.)
'लाखों अरमान थे काग़ज़ पे निकाले कितने" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 8 : अंक - 28 : पृष्ठ - 47 : पृष्ठ - 3 : पृष्ठ के अन्त में काली पट्टी पर एक शे'र "अदना सा सिपाही ये कहे बहरे अदब का / बन जाऊँगा सुलतान अभी सीख रहा हूँ" : जनवरी-मार्च 2016 : भोपाल म.प्र.
“हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है " / "हर एक लफ़्ज़ पे वो जाँ निसार करता है " / " आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष - 5 :अंक - 3 : मार्च 2016 : पृष्ठ- 86 : नई दिल्ली-70
"बेवफ़ाई का सिला भी जो वफ़ा देते हैं" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : वर्ष -17 : अंक - 28 : महफ़िले शायरी : 31 वाँ अंक : मार्च 2016 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"न खायी न झूठी क़सम खाएंगे हम / जुदा हो के तुझसे न रह पाएंगे हम // यकीं गर न हो देख लो आज़माकर / बिछड़ने से पहले ही मर जाएंगे हम" : हिंदी साप्ताहिक "स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब" : "मुक्तक-माला" : वर्ष -18 : अंक – 3 - 4 : पृष्ठ – 2 : 14 - 21 मार्च 2016 : फरीदाबाद (हरियाणा)
"आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है"/ : अर्बाबे-क़लम : अंक-26 : पृष्ठ - 20 : वर्ष - 2016 : देवास, म.प्र.
"बदले मौसम बदलें हम" :"प्राची प्रतिभा": वर्ष - 7 :अंक - 73 : पृष्ठ - 20 : मई 2016 : लखनऊ उ.प्र.
"हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है " / "आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है" : रिसाला-ए-इंसानियत : अदबनामा ( क़लमकार ) शीर्षक के तहत पूर्ण पृष्ठ : वर्ष – 8 : अंक - 29 : पृष्ठ - 36 : अप्रैल, मई , जून 2016 : भोपाल म.प्र.
"बदले मौसम बदलें हम" :"माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 10 : नम्बर -117 : पृष्ठ - 44 : जून 2016 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र
"वह सताता है दूर जा जा कर" :"प्राची प्रतिभा": वर्ष-7 :अंक-74 : पृष्ठ-35 : जून 2016 : लखनऊ उ.प्र.
"बदले मौसम बदलें हम" :"माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 7 : इशू -2 : पृष्ठ - 8 : जुलाई 2016 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.)
"उसी के वास्ते रब ने बनाई हैं जन्नत / जो नेक़ काम यहाँ बेशुमार करता है" / ऊँची-उड़ान / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 29 : अंक - 4 : पृष्ठ - 21 : जून 2016 : दिनेशपुर, उत्तराखंड.
“बिजलियों सी चमक है तेरी" / "बताऊँ क्यों अजीब हूँ" / "बदले मौसम बदलें हम" / "काश ! इक बार मिल सकूँ उससे" : अभिनव इमरोज़ : वर्ष-5 : अंक-7 : जुलाई 2016 : पृष्ठ-57 : नई दिल्ली – 70.
"डॉ कुमार प्रजापति विशेषांक" में "सोच की तीलियाँ" प्राप्त होने पर लिखा गया व्यक्तिगत पत्र प्रकाशित : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 8 : अंक - 30 : पृष्ठ - 46 : जुलाई - सितंबर 2016 : भोपाल म.प्र.
"बदले मौसम, बदलें हम" : "अदबनामा" : वर्ष - 3 : अंक - 1 : पूर्णांक - 9 : पृष्ठ - 71 :
जुलाई-सितम्बर 2016 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र.
"आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" / प्रेरणा-अंशु / वर्ष - 29 : अंक - 5 : पृष्ठ - 25 : पत्र प्रकाशित : पृष्ठ - 05 : जुलाई 2016 : दिनेशपुर, उत्तराखंड.
"चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : "साहित्य कलश" : वर्ष - 3 : अंक - 10 : पृष्ठ - 06 : पत्र प्रकाशित : पृष्ठ - 48 : जुलाई-सितंबर 2016 : पटियाला (पंजाब)
"आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" / "वह सताता है दूर जा जा कर" : गीत गागर : अंक - 15 : पृष्ठ - 35 : पत्र प्रकाशित पृष्ठ - 10 : जुलाई - सितंबर 2016 भोपाल (म.प्र.)
"है आदि काल से मानव का आचरण मित्रो" : सार्थक - 2016 : संपादक - मधुकर गौड़ : वर्ष - 30 : पृष्ठ - 22 : अक्तूबर- नवम्बर 2016 : कांदिवली (प), मुंबई - 400067 .
"पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है" : ”अदबी दहलीज़” : पृष्ठ - 13 : जुलाई - सितंबर 2016 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.)
"बदले मौसम, बदलें हम" / "संयोग साहित्य" वर्ष - 19 : अंक - 3-4 : पृष्ठ - 104 : जुलाई-दिसम्बर 2016 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र)
"हसरते बोसाए रुख़सार, नहीं थी कि जो है" :"माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 12 : इशू -2 : पृष्ठ - 14 : दिसंबर 2016 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.)
"उफ़ ! मिटा पाए न उसकी याद अपने दिल से हम" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 8 : अंक - 31 : पृष्ठ - 50 : अक्टूबर-दिसंबर 2016 : भोपाल (म.प्र.)
"अनल में प्रीत की जलने दिया कब" :"नई लेखनी":अंक-11:पृष्ठ-21:जुलाई-दिसम्बर 2016 : बरेली (उ.प्र.)
“परेशाँ है मेरा दिल मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ” : "आलमी अनवार-ए-तख़लीक़" : उर्दू में : वॉल्यूम - 01 : इशू - 01 : पृष्ठ - 69 : जनवरी 2017 : हिन्दपीरी, रांची (झारखण्ड)
"रूह कहते हैं जिसको क्या है वो" : "माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 3 : इशू -1 : पृष्ठ - 18 : जनवरी 2017 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.)
"हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" : माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 11 : नम्बर -125 : पृष्ठ - 36 : फ़रवरी 2017 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र
"ये हक़ीक़त के ख़्वाब है कोई" : "माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 3 : इशू -3 : पृष्ठ - 14 : मार्च 2017 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.)
"बताऊँ क्यों अजीब हूँ" : "लारैब" (उर्दू) :वॉल्यूम - 29: नंबर-3 : पृष्ठ - 41: मार्च 2017: लखनऊ (उ.प्र.)
"तज़करा है तिरा मिसालों में":अभिनव इमरोज़ :वर्ष-6 :अंक-3 : मार्च 2017: पृष्ठ-11 : नई दिल्ली – 70
"चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है" : "साहित्य कलश" : वर्ष - 3 : अंक - 12 : पृष्ठ - 04 : जनवरी -मार्च 2017 : पटियाला (पंजाब)
"समीक्षा - थिरक उठी है ग़ज़ल" : शायर - वी. सी. राय 'नया' / : अर्बाबे-क़लम : अंक-30 : पृष्ठ - 38 : जनवरी - मार्च 2017 : देवास, म.प्र.
"ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइये" / "गुज़री है रात कैसे सब से कहेंगी आँखें": समकालीन स्पंदन : वर्ष - 01 : अंक - 02 : 37 : जनवरी - मार्च 2017 : वाराणसी उ. प्र.
"बदले मौसम, बदलें हम" : "माहनामा जहाँ नुमा (उर्दू) : वॉल्यूम - 7 : इशू -2 : पृष्ठ - 8 : अप्रैल 2017 : गंगोह, सहारनपुर (उ.प्र.)
"ये हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" : माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 11 : नम्बर -127 : पृष्ठ - 47 : अप्रैल 2017 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र
"साहित्य और देश प्रेम की अनुपम मिसाल - ऊषा भदौरिया 'ऊषा' : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 9 : अंक - 33 : पृष्ठ - 52 -53 : अप्रैल - जून 2017 : भोपाल (म.प्र.)
"ये हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" : मन्थली उर्दू मेला (उर्दू) : इशू - 96 : पृष्ठ-44 : मार्च-अप्रैल 2017 : नागपुर (महाराष्ट्र)
"उर्दू है मेरी जान ! अभी सीख रहा हूँ" / "दास्ताँ सुनो यारो लामकान मकीनों की" : अर्बाबे-क़लम : अंक-31 : पृष्ठ - 21 : अप्रैल-जून-2017 : देवास, म.प्र.
"समीक्षा - थिरक उठी है ग़ज़ल" : शायर - वी. सी. राय 'नया' / : अदबी देहलीज़ : अंक-31 : पृष्ठ - *** : अप्रैल - जून 2017 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.)
"वो सताता है दूर जा जा कर" : माहनामा बे-बाक (उर्दू) : वॉल्यूम - 11 : नम्बर -129 : पृष्ठ - 52 : जून 2017 : मालेगाँव, नासिक - 243203 महाराष्ट्र
"आंसुओं से अपना दामन तर-बतर होने के बाद”" : "लारैब" (उर्दू) :वॉल्यूम - 29: नंबर-6 : पृष्ठ - 39: जून 2017: लखनऊ (उ.प्र.)
"अंतिम अभिलाषा" पूज्य पिताजी इंजी. कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ल की रचना : अभिनव इमरोज़ :वर्ष-6 :अंक-7 : जुलाई 2017: पृष्ठ- 40 : नई दिल्ली – 70.
"दास्ताँ सुनो यारो लामकान मकीनों की" : अभिनव इमरोज़ :वर्ष-6 :अंक-8 :पृष्ठ - 47 (पिछला अंदरूनी कवर पेज) अगस्त 2017: पृष्ठ-17 : नई दिल्ली – 70
"बात हक़ की हो तो क्यों चन्द मकाँ तक पहुँचे" : "लारैब" (उर्दू) :वॉल्यूम - 29: नंबर-8 : पृष्ठ - 40: अगस्त 2017: लखनऊ (उ.प्र.)
"ये हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई" / "फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं" / "हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है" : ग़ैर मुस्लिम ग़ज़लगो (उर्दू में) : अगस्त 2017 : हालात पृष्ठ 137 और तीन ग़ज़लें पृष्ठ 108/109/110 : बालापुर, अकोला, महाराष्ट्र.
"उर्दू है मेरी जान ! अभी सीख रहा हूँ" / "दास्ताँ सुनो यारो लामकान मकीनों की" : अदबी दहलीज़” : पृष्ठ - 17 : पृष्ठ - 5 "गौहरे-पारीना में पूज्य पिताजी इंजी. कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ल की एक रचना "अंतिम अभिलाषा" जुलाई-सितंबर 2017 : सरायमीर, आज़मगढ़ (उ.प्र.)
"आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है" : अभिनव इमरोज़ :वर्ष - 6 : अंक - 9 : सितम्बर 2017: पृष्ठ-17 : नई दिल्ली–70
"क्यों ज़ुबां पर मेरी आ गई हैं प्रिये"/"होठों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती" : प्रखर समाचार : पृष्ठ - 7 : शनिवार, 09.09.2017 : धमतरी (छ.ग.)
"उर्दू है मेरी जान ! अभी सीख रहा हूँ" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 9 : अंक - 35 : पृष्ठ - 68 : अक्टूबर - दिसम्बर - 2017 : भोपाल (म.प्र.)
पूज्य पिताजी इंजी. कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ल की एक रचना "अंतिम अभिलाषा" : "प्रेरणा" चतुर्मासिक : पृष्ठ -16 : अंक -51 : 2017 : पुवायां, शाहजहाँपुर उ.प्र.
"कुछ को तो शबो-रोज़ कमाने की पड़ी है" / "संयोग साहित्य" वर्ष - 20 : अंक - 3-4 : पृष्ठ - 53 : जुलाई-दिसम्बर (संयुक्तांक) 2017 : भायंदर (पूर्व) , मुंबई (महाराष्ट्र)
"दास्ताँ सुनो यारो लामकां मकीनों की" : "अदबनामा" : वर्ष - 4 : अंक - 3 : पूर्णांक - 15 : पृष्ठ - 64 : जनवरी-मार्च 2018 : नरोभास्कर, जालौन उ.प्र.
“फिर से शहनाइयां शामियाने में हैं" / "अंजान हैं इक दूजे से पहचान करेंगे" : गीत गागर: :अंक-22 : पृष्ठ- 27 : अप्रैल - जून 2018 : भोपाल म.प्र.
"दिलों में फिर वो पहली सी मोहब्बत हो अगर पैदा" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष – 10 : अंक - 37 : पृष्ठ - 69 : अप्रैल - जून 2018 : भोपाल (म.प्र.)
"आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब" / उर्दू मासिक "नया दौर" (उर्दू) / वर्ष - 73 : अंक - 4 : पृष्ठ - 76 :अगस्त 2018 : सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, लखनऊ (उ.प्र.)
"तेरे द्वारे आऊं माँ" / "माँ यशोदा का जो दुलारा था" / "लामकाँ मकीनों की, सूफियों की पीरों की" : उजाला 2018 : प्रखर समाचार : पृष्ठ - 32 : धमतरी (छ.ग.)
“साहित्य सरोवर में बौध्दिक स्नान करने जैसा" : पत्र प्रकाशित : गीत गागर: :अंक-25 : पृष्ठ- 09 : जनवरी - मार्च 2019 : भोपाल म.प्र.
"अश्के ग़म से अपना दामन तर-बतर होने के बाद" : रिसाला-ए-इंसानियत : वर्ष–11 : अंक - 40 : पृष्ठ - 59 : जनवरी - मार्च 2019 : भोपाल (म.प्र.)
आकाशवाणी-प्रसार भारती मुंबई के सम्वाहिका चैनल से रचनाओं/काव्यपाठ का प्रसारण-नवम्बर 2012
पुरस्कार, सम्मान एवं सहभागिता
मुंबई, देहली, भोपाल, पुणे, लखनऊ एवं कानपुर में 400 से अधिक मुशायरों, नाशिस्तों, कवि सम्मेलनों और काव्य गोष्ठियों में शिरकत
मुंबई की सामजिक एवं साहित्यिक संस्था आशीर्वाद द्वारा विशेष सम्मान मई 2008
मुंबई में सम्पन्न 24 घंटे के अखंड काव्य अनुष्ठान में सहभागिता और सम्मान पत्र अक्टूबर 2012
अंजुमन फ़रोग-ए-उर्दू द्वारा दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय ग़ज़ल गोष्ठी "ग़ज़ल उत्सव" में शिरकत और स्मृति चिन्ह : जनवरी 2013.
ख़्वाहिश फाउंडेशन (रजि.) कानपुर द्वारा आयोजित "महफ़िल-ए-सुख़न" में शाल एवं स्मृति चिन्ह द्वारा विशेष सम्मान, आयोजक - श्री महेश मिश्रा एवं श्रीमती अलका मिश्रा - 24 मई 2015.
निर्माता / निर्देशक म ना नरहरी जी द्वारा निर्मित 40 रचनाकारों के सामूहिक वीडियो एलबम "दस्तावेज़" में सहभागिता : लोकार्पण दिनांक 03.03.2013 - मुंबई (महाराष्ट्र)
संस्कृति संगम (रजि.) : जोशी बाग़ , कल्याण (महाराष्ट्र) द्वारा आयोजित "हिंदी-उर्दू कवि सम्मलेन - मुशायरा" में पुष्प गुच्छ, शाल एवं स्मृति चिन्ह द्वारा सम्मानित आयोजक - श्री विजय पंडित साहिब एवं श्री अफ़सर दखनी साहिब : 25 दिसम्बर 2016.
अंजुमन फ़रोग-ए-उर्दू द्वारा दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय ग़ज़ल गोष्ठी "ग़ज़ल उत्सव" में शिरकत और स्मृति चिन्ह : जनवरी 2018.
अनुबन्ध फाउंडेशन (संस्थापक श्री प्रमोद कुमार कुश 'तनहा' साहिब) द्वारा आयोजित प्रथम अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह जो दिनांक 10 मार्च 2019 मराठी ग्रंथ संग्रहालय, ठाणे, महाराष्ट्र में संपन्न हुआ में स्मृति चिन्ह और शाल सहित विशेष सम्मान.
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