{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
|संग्रह=हवाएँ चुप नहीं रहतीं / वेणु गोपाल
}}
<poem>
अपने पार भविष्य दिखाते हुए।
जैसे छोटे से गुदाज गुदाज़ बदन वाली बच्ची
किसी जंगली जानवर का मुखौटा लगाए
धम्म से आ कूदे हमारे आगे
नहीं तो भविष्य दिखाते
रंगीन पारदर्शी शीशे के टुकड़े।
(रचनाकाल :24.10.1972)