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ख़तरे / वेणु गोपाल
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11:30, 6 सितम्बर 2008
अपने पार भविष्य दिखाते हुए।
जैसे छोटे से
गुदाज
गुदाज़
बदन वाली बच्ची
किसी जंगली जानवर का मुखौटा लगाए
धम्म से आ कूदे हमारे आगे
नहीं तो भविष्य दिखाते
रंगीन पारदर्शी शीशे के टुकड़े।
(रचनाकाल :24.10.1972)
अनिल जनविजय
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