भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सत्यनारायण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKParichay | {{KKParichay | ||
− | |चित्र= | + | |चित्र=Satyanarayan.jpg |
|नाम=सत्यनारायण | |नाम=सत्यनारायण | ||
|उपनाम= | |उपनाम= | ||
|जन्म= | |जन्म= | ||
|जन्मस्थान= | |जन्मस्थान= | ||
− | |कृतियाँ= | + | |कृतियाँ=सभाध्यक्ष हंस रहा है (1987) -- दूसरा नवगीत-संग्रह |
− | |विविध= | + | |विविध=’सभाध्यक्ष हंस रहा है‘ की कविताएँ तीन खंडों में विभाजित हैं। ये खण्ड हैं- ’जलतरंग आठ पहर का !‘, ’जंगल मुन्तजिर है‘ तथा ’लोकतन्त्र में‘, जिसमें क्रमशः चवालिस गीत, उन्नीस छन्द-मुक्त कविताएँ तथा छः नुक्कड़ कविताएँ संग्रहीत हैं। सत्यनारायण के पास गीत रचने की जितनी तरल सम्वेदनात्मक हार्दिकता है, मुक्त छन्द में बौद्धिक प्रखरता से सम्पन्न उतनी दीप्त और वैचारिक भी है। एक विवश छटपटाहट उनकी कविताओं में विशेषतः उपलब्ध होती है, जिसका मूल कारण आम आदमी की यन्त्रणा के सिलसिले का टूट न पाना है। ’जंगल मुन्तजिर है‘ की उन्नीस कविताएँ कवि के एक दूसरे सशक्त पक्ष का -- शब्द की सही शक्ति के अन्वेषण का उद्घाटन करती हैं। |
|सम्पर्क= | |सम्पर्क= | ||
|जीवनी=[[सत्यनारायण / परिचय]] | |जीवनी=[[सत्यनारायण / परिचय]] | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
{{KKCatBihar}} | {{KKCatBihar}} | ||
{{KKCatNavgeetkaar}} | {{KKCatNavgeetkaar}} | ||
+ | ====नवगीत संग्रह==== | ||
+ | * [[सभाध्यक्ष हंस रहा है / सत्यनारायण]] | ||
+ | ====कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ==== | ||
* [[नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण]] | * [[नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण]] | ||
* [[सूने घर में / सत्यनारायण]] | * [[सूने घर में / सत्यनारायण]] |
23:42, 26 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
सत्यनारायण
जन्म | |
---|---|
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
सभाध्यक्ष हंस रहा है (1987) -- दूसरा नवगीत-संग्रह | |
विविध | |
’सभाध्यक्ष हंस रहा है‘ की कविताएँ तीन खंडों में विभाजित हैं। ये खण्ड हैं- ’जलतरंग आठ पहर का !‘, ’जंगल मुन्तजिर है‘ तथा ’लोकतन्त्र में‘, जिसमें क्रमशः चवालिस गीत, उन्नीस छन्द-मुक्त कविताएँ तथा छः नुक्कड़ कविताएँ संग्रहीत हैं। सत्यनारायण के पास गीत रचने की जितनी तरल सम्वेदनात्मक हार्दिकता है, मुक्त छन्द में बौद्धिक प्रखरता से सम्पन्न उतनी दीप्त और वैचारिक भी है। एक विवश छटपटाहट उनकी कविताओं में विशेषतः उपलब्ध होती है, जिसका मूल कारण आम आदमी की यन्त्रणा के सिलसिले का टूट न पाना है। ’जंगल मुन्तजिर है‘ की उन्नीस कविताएँ कवि के एक दूसरे सशक्त पक्ष का -- शब्द की सही शक्ति के अन्वेषण का उद्घाटन करती हैं। | |
जीवन परिचय | |
सत्यनारायण / परिचय |