{{KKGlobal}} ({{KKRachna|रचनाकार=हेमंत जोशी|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem> '''मार्क्स को याद करते हुए)'''
याद रखें कि मेरा पेट भरा है
कहीं कोई बंजर नहीं, हर तरफ तरफ़ हरा-भरा है
पेट को हमेशा-हमेशा रखने के लिए भरा-पूरा
जंगल से शहरों और शहरों से महानगरों तक फिरा में मैं मारा-मारा।मारा ।
जानवरों के शिकार से
आदमखोरी आदमख़ोरी से भी पेट भरा है।है ।
जब दिखे बंजर मैदान
बदला उनको खलिहानों में
रोटी सूरज की छटाओं सी
अलग-अलग रंगों की
अलग-अलग स्वाद सी।सी ।
जबसे बनाई रोटी
हो गई रोज़ी-रोटी
हो गई मजबूरी इतनी
हाय पापी पेट क्या न करायेकराएचोरी-चकारी, हत्याएंहत्याएँ, हमले, प्रपंच
जेब काटना, बाल काटना
पेड़ काटना, कुर्सी बनाना
बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी
कारें, बसें, रेल की सवारी
ढ़ेरों ढेरों नशे, ढ़ेरों ढेरों बीमारीढ़ेरों ढेरों दवाएँ औऱ और महामारीविकास ही विकास चहुं चहुँ ओरनए-नए हथियार , टैंक, युद्धपोत, विमान
अमीरी और ग़रीबी
ऐय्याशी और मज़दूरी
पता ही नहीं चला
कब सत्ता के दलालों ने
लोकतंत्र लोकतन्त्र के नाम पर रोटी की बहस को
बदल दिया विकास की बहस में
ज्ञान-विज्ञान-अनुसंधान अनुसन्धान और प्रबंधन में।प्रबन्धन की बहस में ।
आज जब कोई भूखा
यहाँ आदमी कहना ज़रूरी नहीं क्योंकी क्योंकि भूख
को स्त्रीलिंग और पुल्लिंग में बाँटना ठीक नहीं
जब कोई भूखा कहता है आज
रोटी दो, मुझे रोटी दो
तो वह वो उससे पूछते हैं
जीने का मतलब क्या केवल रोटी होता है?
देखो, देखो हमने विमान बनाए हैं जिनसे हम पुष्प वर्षा करते हैं
करते थे देवता
पुष्प वर्षा करते हैं हम
लोगों पर , जो जाते हैं सावन में गंगाजल लेनेलोगों पर , जो करते हैं सेवा तुम्हें महामारी से बचाने के लिए।लिए ।
तुम्हें, मूर्ख ! तुम्हें बचाने के लिए
और तुम्हें रोटी की पड़ी है
जब जीवन ही नहीं होगा
तू बचेगा भी या नहीं, पता नहीं
हम सुरक्षित रहेंगे
और हमारे खजाने खज़ाने भरे रहेंगेहम रोटी के बिना ज़िंदा ज़िन्दा रहते हैं
वह और बात है कि हम जीते जी मरे हुए हैं
तू जिसे कहता है रोज़ी-रोटी
मिले तो सही
न मिले तो खोटी है
रोटी नहीं तेरी किस्मत जा अब हमें पुष्प वर्षा करने दे।क़िस्मत
जा, अब हमें पुष्प वर्षा करने दे।
5 05 मई 2020</poem>