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ओटक्कुष़ळ (बाँसुरी) / जी० शंकर कुरुप
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09:18, 3 जून 2020
इस निःसार खोखली नली में ।
मन को मगन कर देने
वाके
वाले
अखिल विश्व के अनोखे गायक !
तू ही तो है जो मेरे अन्दर गीत बनकर बसा है;
सदा के लिये आनन्द-लहरियों में तरंगित हो गया,
धन्य हो गया !
'''1929'''
</poem>
Arti Singh
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