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"आयो घोष बड़ो व्यापारी / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर

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बिकते बिकते बिकते बिकते
 
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रुह हो गई है सरकारी
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अब जब टूट गई ज़ंजीरें
 
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क्या तुम जीते क्या मैं हारी
 
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भूख हिकारत और गरीबी
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किसको कहते हैं खुद्दारी?
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किसको कहते हैं ख़ुद्दारी?
  
 
दुनिया की सुंदरतम् कविता
 
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सोंधी रोटी, दाल बघारी
 
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18:16, 18 जून 2020 के समय का अवतरण

आयो घोष बड़ो व्यापारी
पोछ ले गयो नींद हमारी

कभी जमूरा कभी मदारी
इसको कहते हैं व्यापारी

रंग गई मन की अंगिया-चूनर
देह ने जब मारी पिचकारी

अपना उल्लू सीधा हो बस
कैसा रिश्ता कैसी यारी

आप नशे पर न्यौछावर हो
मैं अब जाऊँ किस पर वारी

बिकते बिकते बिकते बिकते
रूह हो गई है सरकारी

अब जब टूट गई ज़ंजीरें
क्या तुम जीते क्या मैं हारी

भूख हिक़ारत और ग़रीबी
किसको कहते हैं ख़ुद्दारी?

दुनिया की सुंदरतम् कविता
सोंधी रोटी, दाल बघारी