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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=नीरजा / महादेवी वर्मा
}} {{KKCatKavita}}<poem>ओ पागल संसार!माँग न तू हे शीतल तममय!जलने का उपहार!
ओ पागल संसार!<br>करता दीपशिखा का चुम्बन,माँग न तू हे शीतल तममय!<br>पल में ज्वाला का उन्मीलन;जलने छूते ही करना होगाजल मिटने का उपहारव्यापार!ओ पागल संसार!<br><br>
करता दीपशिखा का चुम्बनदीपक जल देता प्रकाश भर,<br>पल में ज्वाला का उन्मीलन;<br>दीपक को छू जल जाता घर,छूते ही करना होगा<br>जलने दे एकाकी मत आजल मिटने का व्यापारहो जावेगा क्षार!<br>ओ पागल संसार!<br><br>
दीपक जल देता जलना ही प्रकाश भर,<br>उसमें सुखदीपक को छू जल जाता घरबुझना ही तम है तम में दुख;तुझमें चिर दुख,<br>जलने दे एकाकी मत आ<br>मुझमें चिर सुखहो जावेगा क्षारकैसे होगा प्यार!<br>ओ पागल संसार!<br><br>
जलना ही प्रकाश उसमें सुख<br>शलभ अन्य की ज्वाला से मिल,बुझना ही तम है तम में दुख;<br>झुलस कहाँ हो पाया उज्जवल!तुझमें चिर दुख, मुझमें चिर सुख<br>कब कर पाया वह लघु तन सेकैसे होगा प्यारनव आलोक-प्रसार!<br>ओ पागल संसार!<br><br>
शलभ अन्य की ज्वाला से मिल,<br>झुलस कहाँ हो पाया उज्जवल!<br>कब कर पाया वह लघु तन से<br>नव आलोक-प्रसार!<br>ओ पागल संसार!<br><br> अपना जीवन-दीप मृदुलतर,<br>वर्ती कर निज स्नेह-सिक्त उर;<br>फिर जो जल पावे हँस-हँस कर<br>हो आभा साकार!<br>ओ पागल संसार!<br><br/poem>
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