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अश्रु-नीर / महादेवी वर्मा

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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=आत्मिका / महादेवी वर्मा
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<poem>
प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर !
दुख से आविल सुख से पंकिल
बुद्बुद से स्वप्नों से फेनिल,
बहता है युग युग से अधीर
जीवन-पथ का दुर्गमतम तल,
अपनी गति से कर सजल सरल,
शीतल करता युग तृषित तीर !
इसमें उपजा यह नीरज सित,
कोमल-कोमल लज्जित मीलित;
सौरभ-सी लेकर मधुर पीर !
प्रिय इन नयनों इसमें न पंक का अश्रु-नीर !<br>दुख से आविल सुख से पंकिल<br>बुद्बुद से स्वप्नों से फेनिलचिह्न शेष,<br>बहता है युग युग से अधीर <br>जीवनइसमें न ठहरता सलिल-पथ का दुर्गमतम तललेश,<br>अपनी गति से कर सजल सरल,<br>शीतल करता युग तृषित तीर !<br>इसमें उपजा यह नीरज सित,<br>कोमल-कोमल लज्जित मीलित;<br>सौरभइसको न जगाती मधुप-सी लेकर मधुर पीर भीर !<br><br>
इसमें न पंक का चिह्न शेष,<br>इसमें न ठहरता सलिल-लेश,<br>इसको न जगाती मधुप-भीर !<br><br> तेरे करुणा-कण से विलसित,<br>हो तेरी चितवन से विकसित,<br>छू तेरी श्वासों का समीर ! <br/poem>
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