गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
तुहिन और तारे / लावण्या शाह
1 byte removed
,
13:34, 18 जुलाई 2020
हरे हरे पत्तों पर जो हैं सजीं हुईं
भोर के धुंधलके में अवतरित धरा
पर चुपचाप बिखरते
तुहीन
तुहिन
कण !
देख, उनको सोचती हूँ मैं मन ही मन
क्यों इनका अस्त्तित्त्व, वसुंधरा पर ?
Abhishek Amber
Mover, Reupload, Uploader
3,967
edits