लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन]]}}[[Category:कविताएँ]]{{KKPageNavigation[[Category:|पीछे=मधुशाला / भाग २ / हरिवंशराय बच्चन]]|आगे=मधुशाला / भाग ४ / हरिवंशराय बच्चन|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन}}{{KKCatRubaayi}}<poem>वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२।
वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुरघन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,अरूण-सुमधुरकमल-हालाकोमल कलियों की प्याली,<br>रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों फूलों का प्याला,<br>विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयोंलोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं, आलापों में,<br>पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१।<br><br>हंस मज्ञल्तऌा होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।४३।
चित्रकार बन हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,चंचल नदियाँ साकी आता लेकर तूली बनकर, भरकर लहरों का प्याला,<br>जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रसकोमल कूर-रंगी हालाकरों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,<br>मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जातेखेत खड़े लहराते,<br>चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२।<br><br>भारत पावन मधुशाला।।४४।
घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,<br>अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,<br>लोल हिलोरें अति उदार दानी साकी बन बन माणिक मधु से भर जातींहै आज बनी भारतमाता,<br>हंस मज्ञल्तऌा होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।४३।<br><br>स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।४५।
हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है हालापीनेवाला,<br>चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,<br>कोमल कूर-करों कहाँ ठिकाना मिलता जग में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,<br>भला अभागे काफिर को?पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।<br><br>शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।४६।
धीर सुतों के हृदय रक्त की आज पथिक बना रक्तिम मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,<br>वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,<br>अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमातामुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,<br>स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४५।<br><br>मधुशाला।।४७।
दुतकारा सजें न मस्जिद ने मुझको कहकर और नमाज़ी कहता है पीनेवालाअल्लाताला,<br>ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली सजधजकर, पर प्याला,<br>साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,शेख, कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?<br>तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय सेशरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।४६।<br><br>चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हालाबजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,<br>सभी जगह मिल जाता साकीगाज गिरी, सभी जगह मिलता प्यालापर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,<br>मुझे ठहरने काशेख, हे मित्रोंबुरा मत मानो इसको, कष्ट नहीं कुछ भी होता,<br>साफ़ कहूँ तो मस्जिद कोमिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४७।<br><br>अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।४९।
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता मुसलमान औ' हिन्दू है अल्लातालादो, एक, मगर, उनका प्याला,<br>सजधजकरएक, परमगर, साकी आताउनका मदिरालय, बन ठनकरएक, पीनेवालामगर,<br>शेखउनकी हाला, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से<br>चिर विधवा है दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद तेरीमन्दिर में जाते, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।<br><br>बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।
बजी नफ़ीरी और कोई भी हो शेख नमाज़ी भूल गया अल्लातालाया पंडित जपता माला,<br>गाज गिरीबैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,<br>शेख, बुरा मत मानो इसकोएक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को<br>अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।४९।<br><br>।५१।
मुसलमान औ' हिन्दू और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है दोहाला, एक, मगरइतरा लें सब पात्र न जब तक, उनका आगे आता है प्याला,<br>एककर लें पूजा शेख, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,<br>दोनों रहते एक न जब पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,<br>बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।<br><br>घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।५२।
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता मालाआज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,<br>बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवालाआज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,<br>एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकलेहोने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई,<br>फिरदेखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।५१।<br><br>जहाँ अभी हैं मन्िदर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।
और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक यज्ञ अग्नि सी धधक रही है हालामधु की भटठी की ज्वाला,<br>इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है प्यालाहर मदिरा पीने वाला,<br>कर लें पूजा शेखमुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में<br>घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही किसी तपोवन से क्या कम है मधुशाला।।५२।<br><br>मेरी पावन मधुशाला।।५४।
आज करे परहेज़ जगतसोम सुरा पुरखे पीते थे, पर, कल पीनी होगी हम कहते उसको हाला,<br>द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्यालावही मधुघट आला,<br>होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोईवेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों, फिर<br>जहाँ अभी हैं मन्िदर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।<br><br>युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।५५।
यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वालावही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,<br>ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वालारंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',<br>मुनि कन्याओं सी मधुघट देव अदेव जिसे ले फिरतीं साकीबालाएँआए,<br>संत महंत मिटा देंगे!किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।<br><br>किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।
सोम सुरा पुरखे पीते थेकभी न सुन पड़ता, हम कहते उसको 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',<br>द्रोणकलश जिसको कहते थेकभी न कोई कहता, आज वही मधुघट आला'उसने जूठा कर डाला प्याला',<br>वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों सभी जाति के ठेकेदारोंलोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,<br>युग युग से है पुजती आई नई नहीं सौ सुधारकों का करती है मधुशाला।।५५।<br><br>काम अकेले मधुशाला।।५७।
वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,<br>रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला'सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,<br>देव अदेव जिसे ले आएव्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे, संत महंत मिटा देंगे!<br>किसमें कितना दम खमठुकराते हिर मंिदरवाले, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।<br><br>पलक बिछाती मधुशाला।।५८।
कभी न सुन पड़ताएक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला, 'इसनेअज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला, हा, छू दी मेरी हाला',<br>रंक राव में भेद हुआ है कभी न कोई कहतानहीं मदिरालय में, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',<br>सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,<br>सौ सुधारकों का करती साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है काम अकेले मधुशाला।।५७।<br><br>यह मेरी मधुशाला।।५९।
श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,<br>सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,<br>व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,<br>ठुकराते हिर मंिदरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।।५८।<br><br> एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,<br>अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,<br>रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,<br>साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९।<br><br> बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,<br>समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,<br>हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,<br>मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०।<br><br/poem>