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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन]]}}[[Category:कविताएँ]]{{KKPageNavigation[[Category:|पीछे=मधुशाला / भाग ५ / हरिवंशराय बच्चन]]|आगे=मधुशाला / भाग ७ / हरिवंशराय बच्चन|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन}}{{KKCatRubaayi}}<poem>साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,जीवन भर का, हाय, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।
साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,<br>क्यों पीने जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,मतवालों की अभिलाषा जिहवा से, करते सबको मतवाला,<br>हम पिस पिसकर मरते हैंकभी निकलते शाप नहीं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,<br>हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।<br><br>दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।
साकीनहीं चाहता, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,<br>पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,<br>जीवन भर नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों काप्याला, हायसाकी, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों नेमेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,<br>भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।<br><br>इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।
जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी मद, मदिरा, मधु, हालासुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,<br>जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,<br>मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहींसाकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,<br>दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।<br><br>प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।
नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,<br>नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,<br>साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,<br>इतना ही पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या कम आँखों मदिरा से देख रहा !मैं तो पागल हो उठता हूँ मधुशाला।।१०४।<br><br>सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।
मद, मदिरा, मधु, देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,<br>क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,<br>साकी, मेरे पास न आना समझ मनुज की दुर्बलता मैं पागल हो जाऊँगाकहा नहीं कुछ भी करता,<br>प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको किन्तु स्वयं ही मधुशाला।।१०५।<br><br>देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,<br>क्या मुझको आवश्यकता है भोला-सा था मेरा साकी से चाहूँ , छोटा-सा मेरा प्याला,<br>पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा छोटे-से!<br>मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता यदि मधुशाला।।१०६।<br><br>था,विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।
देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,<br>देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,<br>समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करताएक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,<br>किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।<br><br>जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,<br>भोला-सा एक समय झूमा करता था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा मेरे हाथों पर प्याला,<br>छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता थाएक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,<br>विस्तृत जग में, हायआज बनी हूँ निर्जन मरघट, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।<br><br>एक समय थी मधुशाला।।११०।
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,<br>भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,<br>एक एक से बढ़कर, सुन्दर आँखें आज बनी हैं साकी ने सत्कार किया,<br>गाल गुलाबी पी होते,जँची कहो आँखों में, परविरही मुझको, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।<br><br>मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,<br>एक समय झूमा करता था मेरे कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों पर में आकर प्याला,<br>एक समय पीनेवाले, कितनी जल्दी साकी आलिंगन करते थेका आकर्षण घटने लगता है,<br>आज बनी हूँ निर्जन मरघटप्रात नहीं थी वैसी, एक समय जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११०।<br><br>मधुशाला।।११२।
जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,<br>छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,<br>आँखें आज बनी हैं पीनेवाले, साकीकी मीठी बातों में मत आना, गाल गुलाबी पी होते,<br>कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।<br><br>मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।
कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हालाछोड़ा मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,<br>कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,<br>कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,<br>प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।<br><br>क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।
बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,<br>कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,<br>पीनेवालेजले हृदय को और जलाना सूझा, साकी की मीठी बातों में मत आना,<br>मैंने मरघट कोमेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११३।<br><br>मधुशाला।।११५।
छोड़ा मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवालाकितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,<br>चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्यालाटूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,<br>अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती हैकितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,<br>क्या कारण? अब छोड़ दिया कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मैंने जाना मधुशाला।।११४।<br><br>मधुशाला।।११६।
यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,<br>तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,<br>जले हृदय कितनी शक्लों को और जलाना सूझारक्खेगा याद भला भोला साकी, मैंने मरघट को<br>अपनाया जब इन चरणों कितने पीनेवालों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।<br><br>है एक अकेली मधुशाला।।११७।
कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला,<br>! हाला!टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की मालामुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,<br>कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गएमिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,<br>कितने पीनेवाले आएमैं अब जमकर बैठ गया हूँ, किन्तु वही घूम रही है मधुशाला।।११६।<br><br>मधुशाला।।११८।
कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हालामैं मदिरालय के अंदर हूँ,<br>कितने मेरे हाथों को रक्खेगा याद भला पागल में प्याला,<br>कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकीप्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,<br>कितने पीनेवालों इस उधेड़-बुन में है एक अकेली मधुशाला।।११७।<br><br>ही मेरा सारा जीवन बीत गया -मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।
दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!<br>मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,<br>मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,<br>मैं अब जमकर बैठ गया हँू, घूम रही है मधुशाला।।११८।<br><br> मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,<br>प्याले में मदिरालय बिंिबत करनेवाली है हाला,<br>इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -<br>मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।<br><br> किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,<br>इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,<br>अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,<br>एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।<br><br/poem>
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