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"हिचकते औ' होते भयभीत / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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हिचकते औ' होते भयभीत
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सुरा को जो करते स्‍वीकार,
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उन्‍हें वह मस्‍ती का उपहार
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हलाहल बनकर देता मार;
  
 
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मगर जो उत्‍सुक-मन, झुक-झूम
हुई थी मदिरा मुझको प्राप्‍त
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हलाहल पी जाते सह्लाद,
 
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उन्‍हें इस विष में होता प्राप्‍त
नहीं, पर, थी वह भेंट, न दान,
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अमर मदिरा का मादक स्‍वाद।
 
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अमृत भी मुझको अस्‍वीकार
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अगर कुंठित हो मेरा मान;
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:::दृगों में मोती की निधि खोल
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:::चुकाया था मधुकण का मोल,
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:::हलाहल यदि आया है यदि पास
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:::हृदय का लोहू दूँगा तोल!
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19:51, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

हिचकते औ' होते भयभीत
सुरा को जो करते स्‍वीकार,
उन्‍हें वह मस्‍ती का उपहार
हलाहल बनकर देता मार;

मगर जो उत्‍सुक-मन, झुक-झूम
हलाहल पी जाते सह्लाद,
उन्‍हें इस विष में होता प्राप्‍त
अमर मदिरा का मादक स्‍वाद।