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"नागिन / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
तू प्रलय काल के मेघों का
 
तू प्रलय काल के मेघों का
 
 
कज्‍जल-सा कालापन लेकर,
 
कज्‍जल-सा कालापन लेकर,
 
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तू नवल सृष्‍टि की ऊषा की
तू नवल सृष्‍टि‍ की ऊषा की
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नव द्युति अपने अंगों में भर,
 
नव द्युति अपने अंगों में भर,
 
 
बड़वाग्नि-विलोडि़त अंबुधि की
 
बड़वाग्नि-विलोडि़त अंबुधि की
 
 
उत्‍तुंग तरंगों से गति ले,
 
उत्‍तुंग तरंगों से गति ले,
 
 
रथ युत रवि-शशि को बंदी कर
 
रथ युत रवि-शशि को बंदी कर
 
 
दृग-कोयों का रच बंदीघर,
 
दृग-कोयों का रच बंदीघर,
 
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कौंधती तड़ित को जिह्वा-सी
कौंधती तड़‍ित को जिह्वा-सी
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विष-मधुमय दाँतों में दाबे,
 
विष-मधुमय दाँतों में दाबे,
 
 
तू प्रकट हुई सहसा कैसे
 
तू प्रकट हुई सहसा कैसे
 
 
मेरी जगती में, जीवन में?
 
मेरी जगती में, जीवन में?
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
 
 
तू मनमोहिनी रंभा-सी,
 
तू मनमोहिनी रंभा-सी,
 
 
तू रुपवती रति रानी-सी,
 
तू रुपवती रति रानी-सी,
 
 
तू मोहमयी उर्वशी सदृश,
 
तू मोहमयी उर्वशी सदृश,
 
 
तू मनमयी इंद्राणी-सी,
 
तू मनमयी इंद्राणी-सी,
 
 
तू दयामयी जगदंबा-सी
 
तू दयामयी जगदंबा-सी
 
 
तू मृत्‍यु सदृश कटु, क्रुर, निठुर,
 
तू मृत्‍यु सदृश कटु, क्रुर, निठुर,
 
 
तू लयंकारी कलिका सदृश,
 
तू लयंकारी कलिका सदृश,
 
 
तू भयंकारी रूद्राणी-सी,
 
तू भयंकारी रूद्राणी-सी,
 
 
तू प्रीति, भीति, आसक्ति, घृणा
 
तू प्रीति, भीति, आसक्ति, घृणा
 
 
की एक विषम संज्ञा बनकर,
 
की एक विषम संज्ञा बनकर,
 
 
परिवर्तित होने को आई
 
परिवर्तित होने को आई
 
 
मेरे आगे क्षण-प्रतिक्षण में।
 
मेरे आगे क्षण-प्रतिक्षण में।
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
प्रलयंकर शंकर के सिर पर
 
प्रलयंकर शंकर के सिर पर
 
 
जो धूलि-धूसरित जटाजूट,
 
जो धूलि-धूसरित जटाजूट,
 
 
उसमें कल्‍पों से सोई थी
 
उसमें कल्‍पों से सोई थी
 
 
पी कालकूट का एक घूँट,
 
पी कालकूट का एक घूँट,
 
 
सहसा समाधि का भंग शंभु,
 
सहसा समाधि का भंग शंभु,
 
 
जब तांडव में तल्‍लीन हुए,
 
जब तांडव में तल्‍लीन हुए,
 
 
निद्रालसमय, तंद्रानिमग्‍न
 
निद्रालसमय, तंद्रानिमग्‍न
 
 
तू धूमकेतु-सी पड़ी छूट;
 
तू धूमकेतु-सी पड़ी छूट;
 
 
अब घुम जलस्‍थल-अंबर में,
 
अब घुम जलस्‍थल-अंबर में,
 
 
अब घूम लोक-लोकांतर में
 
अब घूम लोक-लोकांतर में
 
 
तू किसको खोजा करती है,
 
तू किसको खोजा करती है,
 
 
तू है किसके अन्‍वीक्षण में?
 
तू है किसके अन्‍वीक्षण में?
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
तू नागयोनि नागिनी नहीं,
 
तू नागयोनि नागिनी नहीं,
 
 
तू विश्‍व विमोहक वह माया,
 
तू विश्‍व विमोहक वह माया,
 
 
जिसके इंगित पर युग-युग से
 
जिसके इंगित पर युग-युग से
 
 
यह निखिल विश्‍व नचता आया,
 
यह निखिल विश्‍व नचता आया,
 
 
अपने तप के तेजोबल से
 
अपने तप के तेजोबल से
 
 
दे तुझको व्‍याली की काया,
 
दे तुझको व्‍याली की काया,
 
 
धूर्जटि ने अपने जटिल जूट-
 
धूर्जटि ने अपने जटिल जूट-
 
 
व्‍यूहों में तुझको भरमाया,
 
व्‍यूहों में तुझको भरमाया,
 
 
पर मदनकदन कर महायतन
 
पर मदनकदन कर महायतन
 
 
भी तुझे न सब दिन बाँध सके,
 
भी तुझे न सब दिन बाँध सके,
 
 
तू फिर स्‍वतंत्र बन फिरती है
 
तू फिर स्‍वतंत्र बन फिरती है
 
 
सबके लोचन में, तन-मन में;
 
सबके लोचन में, तन-मन में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
  
  
 
तू फिरती चंचल फिरकी-सी
 
तू फिरती चंचल फिरकी-सी
 
 
अपने फन में फुफकार लिए,
 
अपने फन में फुफकार लिए,
 
 
दिग्‍गज भी जिससे काँप उठे
 
दिग्‍गज भी जिससे काँप उठे
 
 
ऐसा भीषण हुँकार लिए,
 
ऐसा भीषण हुँकार लिए,
 
 
पर पल में तेरा स्‍वर बदला,
 
पर पल में तेरा स्‍वर बदला,
 
 
पल में तेरी मुद्रा बदली,
 
पल में तेरी मुद्रा बदली,
 
 
तेरा रुठा है कौन कि तू
 
तेरा रुठा है कौन कि तू
 
 
अधरों पर मृदु मनुहार लिए,
 
अधरों पर मृदु मनुहार लिए,
 
 
अभिनंदन करती है उसका,
 
अभिनंदन करती है उसका,
 
 
अभिपादन करती है उसका,
 
अभिपादन करती है उसका,
 
 
लगती है कुछ भी देर नहीं
 
लगती है कुछ भी देर नहीं
 
 
तेरे मन के परिवर्तन में;
 
तेरे मन के परिवर्तन में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
प्रेयसि का जग के तापों से
 
प्रेयसि का जग के तापों से
 
 
रक्षा करने वाला अंचल,
 
रक्षा करने वाला अंचल,
 
 
चंचल यौवन कल पाता है
 
चंचल यौवन कल पाता है
 
 
पाकर जिसकी छाया शीतल,
 
पाकर जिसकी छाया शीतल,
 
 
जीवन का अंतिम वस्‍त्र कफ़न
 
जीवन का अंतिम वस्‍त्र कफ़न
 
 
जिसको नख से शीख तक तनकर
 
जिसको नख से शीख तक तनकर
 
 
वह सोता ऐसी निद्रा में
 
वह सोता ऐसी निद्रा में
 
 
है होता जिसके हेतु न कल,
 
है होता जिसके हेतु न कल,
 
 
जिसको तन तरसा करता है,
 
जिसको तन तरसा करता है,
 
 
जिससे डरपा करता है,
 
जिससे डरपा करता है,
 
 
दोनों की झलक मुझे मिलती
 
दोनों की झलक मुझे मिलती
 
 
तेरे फन के अवगुंठन में!
 
तेरे फन के अवगुंठन में!
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
जाग्रत जीवन का कंपन है
 
जाग्रत जीवन का कंपन है
 
 
तेरे अंगों के कंपन में,
 
तेरे अंगों के कंपन में,
 
 
पागल प्राणें का स्‍पंदन है
 
पागल प्राणें का स्‍पंदन है
 
 
तेरे अंगों के स्‍पंदन में,
 
तेरे अंगों के स्‍पंदन में,
 
 
तेरे द्रुत दोलित काया में
 
तेरे द्रुत दोलित काया में
 
 
मतवाली घरियों की धड़कन,
 
मतवाली घरियों की धड़कन,
 
 
उन्‍मद साँसों की सिहरन में,
 
उन्‍मद साँसों की सिहरन में,
 
 
अल्‍हड़ यौवन करवट लेता
 
अल्‍हड़ यौवन करवट लेता
 
 
जब तू भू पर लुंठित होती,
 
जब तू भू पर लुंठित होती,
 
 
अलमस्‍त जवानी अँगराती
 
अलमस्‍त जवानी अँगराती
 
 
तेरे अंगों की ऐंठन में;
 
तेरे अंगों की ऐंठन में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
 
 
तू उच्‍च महत्‍वाकांक्षा-सी
 
तू उच्‍च महत्‍वाकांक्षा-सी
 
 
नीचे से उठती ऊपर को,
 
नीचे से उठती ऊपर को,
 
 
निज मुकुट बना लेगी जैसे
 
निज मुकुट बना लेगी जैसे
 
 
तारावलि- मंडल अंबर को,
 
तारावलि- मंडल अंबर को,
 
 
तू विनत प्रार्थना-सी झुककर
 
तू विनत प्रार्थना-सी झुककर
 
 
ऊपर से नीचे को आती,
 
ऊपर से नीचे को आती,
 
 
जैसे कि किसी की पद-से
 
जैसे कि किसी की पद-से
 
 
ढँकने को है अपने सिर को,
 
ढँकने को है अपने सिर को,
 
 
तू आसा-सी आगे बढ़ती,
 
तू आसा-सी आगे बढ़ती,
 
 
तू लज्‍जा-सी पीछे हटती,
 
तू लज्‍जा-सी पीछे हटती,
 
 
जब एक जगह टिकती, लगती
 
जब एक जगह टिकती, लगती
 
 
दृढ़ निश्‍चय-सी निश्‍चल मन में।
 
दृढ़ निश्‍चय-सी निश्‍चल मन में।
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
मलयाचल में मलयानिल-सी
 
मलयाचल में मलयानिल-सी
 
 
पल भर खाती, पल इतराती
 
पल भर खाती, पल इतराती
 
 
तू जब आती, युग-युग दहाती
 
तू जब आती, युग-युग दहाती
 
 
शीतल हो जाती है छाती,
 
शीतल हो जाती है छाती,
 
 
पर जब चलती उद्वेग भरी
 
पर जब चलती उद्वेग भरी
 
 
उत्‍तप्‍त मरूस्‍थल की लू-सी
 
उत्‍तप्‍त मरूस्‍थल की लू-सी
 
 
चिर संचित, सिंचित अंतर के
 
चिर संचित, सिंचित अंतर के
 
 
नंदन में आग लग जाती;
 
नंदन में आग लग जाती;
 
 
शत हिमशिखरों की शीतलता,
 
शत हिमशिखरों की शीतलता,
 
 
श्‍त ज्‍वालामुखियों की दहकन,
 
श्‍त ज्‍वालामुखियों की दहकन,
 
 
दोनों आभासित होती है
 
दोनों आभासित होती है
 
 
मुझको तेरे आलिंगन में!
 
मुझको तेरे आलिंगन में!
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
 
 
इस पुतली के अंदर चित्रित
 
इस पुतली के अंदर चित्रित
 
 
जग के अतीत की करूण कथा,
 
जग के अतीत की करूण कथा,
 
 
गज के यौवन का संघर्षन,
 
गज के यौवन का संघर्षन,
 
 
जग के जीवन की दुसह व्‍यथा;
 
जग के जीवन की दुसह व्‍यथा;
  
 
है झुम रही उस पुतली में
 
है झुम रही उस पुतली में
 
 
एेसे सुख-सपनों की झाँकी,
 
एेसे सुख-सपनों की झाँकी,
 
 
जो निकली है जब आशा ने
 
जो निकली है जब आशा ने
 
 
दुर्गम भविष्‍य का गर्भ माथा;
 
दुर्गम भविष्‍य का गर्भ माथा;
 
 
है क्षुब्‍ध-मुग्‍ध पल-पल क्रम से
 
है क्षुब्‍ध-मुग्‍ध पल-पल क्रम से
 
 
लंगर-सा हिल-हिल वर्तमान
 
लंगर-सा हिल-हिल वर्तमान
 
 
मुख अपना देखा करता है
 
मुख अपना देखा करता है
 
 
तेरे नयनों के दर्पण में;
 
तेरे नयनों के दर्पण में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
तेरे आनन का एक नयन
 
तेरे आनन का एक नयन
 
 
दिनमणि-सा दिपता उस पथ पर,
 
दिनमणि-सा दिपता उस पथ पर,
 
 
जो स्‍वर्ग लोक को जाता है,
 
जो स्‍वर्ग लोक को जाता है,
 
 
जो चिर संकटमय, चिर दस्‍तूर;
 
जो चिर संकटमय, चिर दस्‍तूर;
 
 
तेरे आनन का एक नेत्र
 
तेरे आनन का एक नेत्र
 
 
दीपक-सा उस मग पर जगता,
 
दीपक-सा उस मग पर जगता,
 
 
जो नरक लोक को जाता है,
 
जो नरक लोक को जाता है,
 
 
जो चिर सुखमायमय, चिर सुखकर;
 
जो चिर सुखमायमय, चिर सुखकर;
 
 
दोनों के अंदर आमंत्रण,
 
दोनों के अंदर आमंत्रण,
 
 
दोनों के अंदर आकर्षण,
 
दोनों के अंदर आकर्षण,
 
 
खुलते-मुंदते हैं सर्व्‍ग-नरक
 
खुलते-मुंदते हैं सर्व्‍ग-नरक
 
 
के देर तेरी हर चितवन में!
 
के देर तेरी हर चितवन में!
 
  
 
सहसा यह तेरी भृकुटि झुकी,
 
सहसा यह तेरी भृकुटि झुकी,
 
 
नभ से करूणा की वृष्टि हुई,
 
नभ से करूणा की वृष्टि हुई,
 
 
मृत-मूर्च्छित पृथ्‍वी के ऊपर
 
मृत-मूर्च्छित पृथ्‍वी के ऊपर
 
 
फिर से जीवन की सृष्टि हुई,
 
फिर से जीवन की सृष्टि हुई,
 
 
जग के आँगन में लपट उठी,
 
जग के आँगन में लपट उठी,
 
 
स्‍वप्‍नों की दुनिया नष्‍ट हुई;
 
स्‍वप्‍नों की दुनिया नष्‍ट हुई;
 
 
स्‍वेच्‍छाचारिण‍ि, है निष्‍कारण
 
स्‍वेच्‍छाचारिण‍ि, है निष्‍कारण
 
 
सब तेरे मन का क्रोध, कृपा,
 
सब तेरे मन का क्रोध, कृपा,
 
 
जग मिटता-बनता रहता है
 
जग मिटता-बनता रहता है
 
 
तेरे भ्रू के संचालन में;
 
तेरे भ्रू के संचालन में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
अपने प्रतिकूल गुणों की सब
 
अपने प्रतिकूल गुणों की सब
 
 
माया तू संग दिखाती है,
 
माया तू संग दिखाती है,
 
 
भ्रम, भय, संशय, संदेहों से
 
भ्रम, भय, संशय, संदेहों से
 
 
काया विजडि़त हो जाती है,
 
काया विजडि़त हो जाती है,
 
 
फिर एक लहर-सीआती है,
 
फिर एक लहर-सीआती है,
 
 
फिर होश अचानक होता है,
 
फिर होश अचानक होता है,
 
 
विश्‍वासी आशा, निष्‍ठा,
 
विश्‍वासी आशा, निष्‍ठा,
 
 
श्रद्धा पलकों पर छाती है;
 
श्रद्धा पलकों पर छाती है;
 
 
तू मार अमृत से सकती है,
 
तू मार अमृत से सकती है,
  
 
अमरत्‍व गरल से दे सकती,
 
अमरत्‍व गरल से दे सकती,
 
 
मेरी मति सब सुध-बुध भूली
 
मेरी मति सब सुध-बुध भूली
  
 
तेरे छलनामय लक्षण में;
 
तेरे छलनामय लक्षण में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
पिपरीत क्रियाएँमेरी भी
 
पिपरीत क्रियाएँमेरी भी
 
 
अब होती हैं तेरे आगे,
 
अब होती हैं तेरे आगे,
 
 
पग तेरे पास चले आए
 
पग तेरे पास चले आए
  
 
जब वे तेरे भय से भागे,
 
जब वे तेरे भय से भागे,
 
 
मायाविनि क्‍या कर देती है
 
मायाविनि क्‍या कर देती है
 
 
सीधा उलटा हो जाता है,
 
सीधा उलटा हो जाता है,
 
 
जब मुक्ति चाहता था अपनी
 
जब मुक्ति चाहता था अपनी
 
 
तुझसे मैंने बंधन माँगे,
 
तुझसे मैंने बंधन माँगे,
 
 
अब शा‍ंति दुसह-सी लगती है,
 
अब शा‍ंति दुसह-सी लगती है,
 
 
अब मन अशांति में रमता है,
 
अब मन अशांति में रमता है,
 
 
अब जलन सुहाती है उर को,
 
अब जलन सुहाती है उर को,
 
 
अब सुख मिलता उत्‍पीड़न में;
 
अब सुख मिलता उत्‍पीड़न में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
तूने आँखों में आँख डाल
 
तूने आँखों में आँख डाल
 
 
है बाँध लिया मेरे मन को,
 
है बाँध लिया मेरे मन को,
 
 
मैं तुझको कीलने चला मगर
 
मैं तुझको कीलने चला मगर
  
 
कीला तूने तन को,
 
कीला तूने तन को,
 
 
तेरी परछाई-सा बन मैं
 
तेरी परछाई-सा बन मैं
 
 
तेरे संग हिलता-डुलता हूँ,
 
तेरे संग हिलता-डुलता हूँ,
 
+
मैं नहीं समझता अलग-अलग
मैं नहीं समझता अलग-अलग  
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अब तेरे-अपने जीवन को,
 
अब तेरे-अपने जीवन को,
 
 
मैं तन-मन का दुर्बल प्राणी,
 
मैं तन-मन का दुर्बल प्राणी,
 
 
ज्ञानी, ध्‍यानी भी बड़े-बड़े
 
ज्ञानी, ध्‍यानी भी बड़े-बड़े
 
 
हो दास चुके तेरे, मुझको
 
हो दास चुके तेरे, मुझको
 
 
क्‍या लज्‍जा आत्‍म-समर्पण में;
 
क्‍या लज्‍जा आत्‍म-समर्पण में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
तुझ पर न सका चल कोई भी
 
तुझ पर न सका चल कोई भी
 
 
मेरा प्रयोग मारण-मोहन,
 
मेरा प्रयोग मारण-मोहन,
 
 
तेरा न फिरा मन और कहीं
 
तेरा न फिरा मन और कहीं
 
 
फेंका भी मैंने उच्चाटन,
 
फेंका भी मैंने उच्चाटन,
  
 
सब मंत्र, तंत्र, अभिचारों पर
 
सब मंत्र, तंत्र, अभिचारों पर
 
 
तू हुई विजयिनी निष्‍प्रयत्‍न,
 
तू हुई विजयिनी निष्‍प्रयत्‍न,
 
 
उलटा तेरे वश में आया
 
उलटा तेरे वश में आया
 
 
मेरा परिचालित वशीकरण;
 
मेरा परिचालित वशीकरण;
 
 
कर यत्‍न थका, तू सध न सकी
 
कर यत्‍न थका, तू सध न सकी
 
 
मेरे छंदों के बंधन में;
 
मेरे छंदों के बंधन में;
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
  
 
सब सास-दाम औ' दंड-भेद
 
सब सास-दाम औ' दंड-भेद
 
 
तेरे आगे बेकार हुआ,
 
तेरे आगे बेकार हुआ,
 
 
जप, तप, व्रत, संयम, साधन का
 
जप, तप, व्रत, संयम, साधन का
 
 
असफल सारा व्‍यापार हुआ,
 
असफल सारा व्‍यापार हुआ,
 
 
तू दूर न मुझसे भाग सकी,
 
तू दूर न मुझसे भाग सकी,
 
 
मैं दूर न तुझसे भाग सका,
 
मैं दूर न तुझसे भाग सका,
 
 
अनिवारिणि, करने को अंतिम
 
अनिवारिणि, करने को अंतिम
 
 
निश्‍चय, ले मैं तैयार हुआ-
 
निश्‍चय, ले मैं तैयार हुआ-
 
 
अब शंति, अशांमति, माण,जीवन
 
अब शंति, अशांमति, माण,जीवन
 
 
या इनसे भी कुछ भिन्‍न अगर,
 
या इनसे भी कुछ भिन्‍न अगर,
 
 
सब तेरे पिषमय चुंबन में,
 
सब तेरे पिषमय चुंबन में,
 
 
सब तेरे मधुमय दंशन में!
 
सब तेरे मधुमय दंशन में!
 
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
 
 
मेरे जीवन के आँगन में!
 
मेरे जीवन के आँगन में!
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</poem>

20:17, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

तू प्रलय काल के मेघों का
कज्‍जल-सा कालापन लेकर,
तू नवल सृष्‍टि की ऊषा की
नव द्युति अपने अंगों में भर,
बड़वाग्नि-विलोडि़त अंबुधि की
उत्‍तुंग तरंगों से गति ले,
रथ युत रवि-शशि को बंदी कर
दृग-कोयों का रच बंदीघर,
कौंधती तड़ित को जिह्वा-सी
विष-मधुमय दाँतों में दाबे,
तू प्रकट हुई सहसा कैसे
मेरी जगती में, जीवन में?
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!
तू मनमोहिनी रंभा-सी,
तू रुपवती रति रानी-सी,
तू मोहमयी उर्वशी सदृश,
तू मनमयी इंद्राणी-सी,
तू दयामयी जगदंबा-सी
तू मृत्‍यु सदृश कटु, क्रुर, निठुर,
तू लयंकारी कलिका सदृश,
तू भयंकारी रूद्राणी-सी,
तू प्रीति, भीति, आसक्ति, घृणा
की एक विषम संज्ञा बनकर,
परिवर्तित होने को आई
मेरे आगे क्षण-प्रतिक्षण में।
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

प्रलयंकर शंकर के सिर पर
जो धूलि-धूसरित जटाजूट,
उसमें कल्‍पों से सोई थी
पी कालकूट का एक घूँट,
सहसा समाधि का भंग शंभु,
जब तांडव में तल्‍लीन हुए,
निद्रालसमय, तंद्रानिमग्‍न
तू धूमकेतु-सी पड़ी छूट;
अब घुम जलस्‍थल-अंबर में,
अब घूम लोक-लोकांतर में
तू किसको खोजा करती है,
तू है किसके अन्‍वीक्षण में?
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

तू नागयोनि नागिनी नहीं,
तू विश्‍व विमोहक वह माया,
जिसके इंगित पर युग-युग से
यह निखिल विश्‍व नचता आया,
अपने तप के तेजोबल से
दे तुझको व्‍याली की काया,
धूर्जटि ने अपने जटिल जूट-
व्‍यूहों में तुझको भरमाया,
पर मदनकदन कर महायतन
भी तुझे न सब दिन बाँध सके,
तू फिर स्‍वतंत्र बन फिरती है
सबके लोचन में, तन-मन में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!


तू फिरती चंचल फिरकी-सी
अपने फन में फुफकार लिए,
दिग्‍गज भी जिससे काँप उठे
ऐसा भीषण हुँकार लिए,
पर पल में तेरा स्‍वर बदला,
पल में तेरी मुद्रा बदली,
तेरा रुठा है कौन कि तू
अधरों पर मृदु मनुहार लिए,
अभिनंदन करती है उसका,
अभिपादन करती है उसका,
लगती है कुछ भी देर नहीं
तेरे मन के परिवर्तन में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

प्रेयसि का जग के तापों से
रक्षा करने वाला अंचल,
चंचल यौवन कल पाता है
पाकर जिसकी छाया शीतल,
जीवन का अंतिम वस्‍त्र कफ़न
जिसको नख से शीख तक तनकर
वह सोता ऐसी निद्रा में
है होता जिसके हेतु न कल,
जिसको तन तरसा करता है,
जिससे डरपा करता है,
दोनों की झलक मुझे मिलती
तेरे फन के अवगुंठन में!
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

जाग्रत जीवन का कंपन है
तेरे अंगों के कंपन में,
पागल प्राणें का स्‍पंदन है
तेरे अंगों के स्‍पंदन में,
तेरे द्रुत दोलित काया में
मतवाली घरियों की धड़कन,
उन्‍मद साँसों की सिहरन में,
अल्‍हड़ यौवन करवट लेता
जब तू भू पर लुंठित होती,
अलमस्‍त जवानी अँगराती
तेरे अंगों की ऐंठन में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!
तू उच्‍च महत्‍वाकांक्षा-सी
नीचे से उठती ऊपर को,
निज मुकुट बना लेगी जैसे
तारावलि- मंडल अंबर को,
तू विनत प्रार्थना-सी झुककर
ऊपर से नीचे को आती,
जैसे कि किसी की पद-से
ढँकने को है अपने सिर को,
तू आसा-सी आगे बढ़ती,
तू लज्‍जा-सी पीछे हटती,
जब एक जगह टिकती, लगती
दृढ़ निश्‍चय-सी निश्‍चल मन में।
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

मलयाचल में मलयानिल-सी
पल भर खाती, पल इतराती
तू जब आती, युग-युग दहाती
शीतल हो जाती है छाती,
पर जब चलती उद्वेग भरी
उत्‍तप्‍त मरूस्‍थल की लू-सी
चिर संचित, सिंचित अंतर के
नंदन में आग लग जाती;
शत हिमशिखरों की शीतलता,
श्‍त ज्‍वालामुखियों की दहकन,
दोनों आभासित होती है
मुझको तेरे आलिंगन में!
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!
इस पुतली के अंदर चित्रित
जग के अतीत की करूण कथा,
गज के यौवन का संघर्षन,
जग के जीवन की दुसह व्‍यथा;

है झुम रही उस पुतली में
एेसे सुख-सपनों की झाँकी,
जो निकली है जब आशा ने
दुर्गम भविष्‍य का गर्भ माथा;
है क्षुब्‍ध-मुग्‍ध पल-पल क्रम से
लंगर-सा हिल-हिल वर्तमान
मुख अपना देखा करता है
तेरे नयनों के दर्पण में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

तेरे आनन का एक नयन
दिनमणि-सा दिपता उस पथ पर,
जो स्‍वर्ग लोक को जाता है,
जो चिर संकटमय, चिर दस्‍तूर;
तेरे आनन का एक नेत्र
दीपक-सा उस मग पर जगता,
जो नरक लोक को जाता है,
जो चिर सुखमायमय, चिर सुखकर;
दोनों के अंदर आमंत्रण,
दोनों के अंदर आकर्षण,
खुलते-मुंदते हैं सर्व्‍ग-नरक
के देर तेरी हर चितवन में!

सहसा यह तेरी भृकुटि झुकी,
नभ से करूणा की वृष्टि हुई,
मृत-मूर्च्छित पृथ्‍वी के ऊपर
फिर से जीवन की सृष्टि हुई,
जग के आँगन में लपट उठी,
स्‍वप्‍नों की दुनिया नष्‍ट हुई;
स्‍वेच्‍छाचारिण‍ि, है निष्‍कारण
सब तेरे मन का क्रोध, कृपा,
जग मिटता-बनता रहता है
तेरे भ्रू के संचालन में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

अपने प्रतिकूल गुणों की सब
माया तू संग दिखाती है,
भ्रम, भय, संशय, संदेहों से
काया विजडि़त हो जाती है,
फिर एक लहर-सीआती है,
फिर होश अचानक होता है,
विश्‍वासी आशा, निष्‍ठा,
श्रद्धा पलकों पर छाती है;
तू मार अमृत से सकती है,

अमरत्‍व गरल से दे सकती,
मेरी मति सब सुध-बुध भूली

तेरे छलनामय लक्षण में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

पिपरीत क्रियाएँमेरी भी
अब होती हैं तेरे आगे,
पग तेरे पास चले आए

जब वे तेरे भय से भागे,
मायाविनि क्‍या कर देती है
सीधा उलटा हो जाता है,
जब मुक्ति चाहता था अपनी
तुझसे मैंने बंधन माँगे,
अब शा‍ंति दुसह-सी लगती है,
अब मन अशांति में रमता है,
अब जलन सुहाती है उर को,
अब सुख मिलता उत्‍पीड़न में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

तूने आँखों में आँख डाल
है बाँध लिया मेरे मन को,
मैं तुझको कीलने चला मगर

कीला तूने तन को,
तेरी परछाई-सा बन मैं
तेरे संग हिलता-डुलता हूँ,
मैं नहीं समझता अलग-अलग
अब तेरे-अपने जीवन को,
मैं तन-मन का दुर्बल प्राणी,
ज्ञानी, ध्‍यानी भी बड़े-बड़े
हो दास चुके तेरे, मुझको
क्‍या लज्‍जा आत्‍म-समर्पण में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

तुझ पर न सका चल कोई भी
मेरा प्रयोग मारण-मोहन,
तेरा न फिरा मन और कहीं
फेंका भी मैंने उच्चाटन,

सब मंत्र, तंत्र, अभिचारों पर
तू हुई विजयिनी निष्‍प्रयत्‍न,
उलटा तेरे वश में आया
मेरा परिचालित वशीकरण;
कर यत्‍न थका, तू सध न सकी
मेरे छंदों के बंधन में;
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!

सब सास-दाम औ' दंड-भेद
तेरे आगे बेकार हुआ,
जप, तप, व्रत, संयम, साधन का
असफल सारा व्‍यापार हुआ,
तू दूर न मुझसे भाग सकी,
मैं दूर न तुझसे भाग सका,
अनिवारिणि, करने को अंतिम
निश्‍चय, ले मैं तैयार हुआ-
अब शंति, अशांमति, माण,जीवन
या इनसे भी कुछ भिन्‍न अगर,
सब तेरे पिषमय चुंबन में,
सब तेरे मधुमय दंशन में!
नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन,
मेरे जीवन के आँगन में!