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लावण्या शाह

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/* कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ */
{{KKGlobal}}
{{KKParichay
|चित्र=Lavanya-shah-kavitakosh.jpgjpeg
|नाम=लावण्या शाह
|उपनाम=लावणी
|जीवनी=[[लावण्या शाह / परिचय]]
}}
{{KKCatMahilaRachnakaar}}
{{KKCatPravasiRachnakaar}}
====कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ====
* [[पकी पकी फ़सल / लावण्या शाह]]
* [[भोर भई, तकते पिय का पथ / लावण्या शाह]]
* [[वह मैं हूँ / लावण्या शाह]]
* [[श्री सीता ~ स्तुति / लावण्या शाह]]
* [[अबोध का बोध पाठ / लावण्या शाह]]
* [[स्वर्ण कलश / लावण्या शाह]]
* [[रे मन / लावण्या शाह]]
* [[दहलीज / लावण्या शाह]]
* [[रात कहती है कहानी / लावण्या शाह]]
* [[पाती एक अजानी / लावण्या शाह]]
* [[सन्दर्भ / लावण्या शाह]]
* [[इच्छा - मृत्यु / लावण्या शाह]]
इच्छा - अनिच्छा के द्वंद में धंसा , पिसा मन * [[अनुनय / लावण्या शाह]]धराशायी तन , दग्ध , कुटिल अग्नि - वृण से , छलनी , तेजस्वी सूर्य - सा , गंगा - पुत्र * [[जपाकुसुम का , फूल / लावण्या शाह]]गिरा , देख रहे , कुरुक्षेत्र की रण- भूमि में , युधिष्ठिर! * [[पल पल जीवन बीता जाये / लावण्या शाह]]* [ युधिष्ठिर[कोकिला / लावण्या शाह]] " हा तात ! युद्ध की विभीषिका में , तप्त - दग्ध , पीड़ित , लहू चूसते ये बाणोँ का , सघन आवरण , * [[प्रेम मूर्ति / लावण्या शाह]]तन * [[गुदड़ी का रोम रोम - घायल किए ! ये कैसा क्षण है ! " धर्म -राज , रथ से उतर के , मौन खड़े हैं , रूक गया है युद्ध , रवि - अस्ताचलगामी ! आ रहे सभी बांधव , धनुर्धर इसी दिशा में , अश्रु अंजलि देने , विकल , दुःख क़तर , तप्त ह्रदय समेटे । लाल / लावण्या शाह]]* [ अर्जुन [जय मां जय जय भारती / लावण्या शाह]] " पितामह ! प्रणाम ! क्षमा करें ! धिक् - धिक्कार है !" गांडीव को उतार, अश्रु पूरित नेत्रों से करता प्रणाम , धरा पर झुक गया पार्थ * [[रात्रि का पुरुषार्थ ,अंतिम प्रहर / लावण्या शाह]]हताश , हारा तन - मन , मन मंथन * [[तुहिन और तारे / लावण्या शाह]]कुरुक्षेत्र के रणाँगण में !* [[कृष्ण गीत / लावण्या शाह]]* [ भीष्म पितामह [जीवन सार / लावण्या शाह]] " आओ पुत्र ! दो शिरस्त्राण,मेरा सर ऊंचा करो !" * [[निसर्ग प्रकृति / लावण्या शाह]]* [ अर्जुन [दिये और रोशनी / लावण्या शाह]] " जो आज्ञा तात ! " कह , पाँच तीरों से उठाया शीश * [[पाहुन बरखा / लावण्या शाह]]* [ भीष्म [मेरा नन्हा / लावण्या शाह]] " प्यास लगी है पुत्र , पिला दो जल मुझे " फ़िर आज्ञा हुई , निशब्द अर्जुन ने शर संधान से , गंगा प्रकट की !* [ श्री कृष्ण [मधुकर / लावण्या शाह]] " हे , वीर गंगा -पुत्र ! जय शांतनु - नंदन की ! सुनो , वीर पांडव , " इच्छा - मृत्यु", इनका वरदान है !अब उत्तरायण * [[प्रीत की करेंगें प्रतीक्षा , भीष्म यूँही , लेटे, बाण शैय्या पर , यूँही , पूर्णाहुति तक ! " कुरुक - शेत्र के रण मैदान का , ये भी एक सर्ग था !अल्पनाएं / लावण्या शाह]]
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