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|रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी
|संग्रह=नज़ीर ग्रन्थावली / नज़ीर अकबराबादी
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टुक हिर्सो-हवाहवस<ref>लालच</ref> को छोड़ मियां, मत देस-बिदेस विदेश फिरे मारामारा।क़ज़्ज़ाकक़ज़्ज़ाक़<ref>डाकू</ref> अजल<ref>मौत</ref> का लूटे है , दिन-रात बजाकर नक़्क़ारानक़्क़ारा।क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतुरशुतर<ref>ऊंट</ref> क्या गौनें गोने पल्ला सर भाराभारा।क्या गेहूं, चावल, मोठमोंठ, मटर, क्या आग, धुआं धुंआ और अंगाराअंगारा।:सब ठाठ पड़ा रह जावेगा , जब लाद चलेगा बंजाराबंजारा॥1॥
ग़र गर तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी हैहै। ग़ाफ़िल तुझसे , तुझ से भी चढ़ता इक एक और बड़ा ब्योपारी हैव्यापारी है।क्या शक्कर, मिसरीमिश्री, क़ंद<ref>खांड</ref>, गरी , क्या सांभर मीठा-खारी हैहै।क्या दाख़दाख, मुनक़्क़ा, सोंठ, मिरच , क्या केसर, लौंग, सुपारी हैहै।:सब ठाठ पड़ा रह जावेगा , जब लाद चलेगा बंजाराबंजारा॥2॥
तू बधिया लादे बैल भरे , जो पूरब पच्छिम जावेगापश्चिम जावेगा।या सूद बढ़ाकर लावेगा , या टोटा घाटा पावेगापावेगा।क़ज़्ज़ाक़ क़ज़्ज़ाक अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगागिरावेगा।धन-, दौलत , नाती-पोता क्या इक , एक कुनबा काम न आवेगा।सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥3॥ हर मंजिल में अब साथ तेरे यह जितना डेरा डंडा है।ज़र दाम दिरम का भांडा है, बन्दूक सिपर और खाँड़ा है।जब नायक तन का निकल गया, जो मुल्कों मुल्कों हांडा है।फिर हांडा है न भांडा है, न हलवा है न मांडा है।सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥4॥ जब चलते-चलते रस्ते में यह गौन तेरी ढल जावेगी।एक बधिया तेरी मिट्टी पर, फिर घास न चरने आवेगी।यह खेप जो तूने लादी है, सब हिस्सों में बंट जावेगी।धी, पूत, जमाई, बेटा क्या, बंजारिन पास न आवेगी।सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥5॥ यह खेप भरे जो जाता है, यह खेप मियां मत गिन अपनी।अब कोई घड़ी, पल साअत में, यह खेप बदन की है कफ़नी।क्या थाल कटोरे चांदी के, क्या पीतल की डिबिया ढकनी।क्या बरतन सोने चांदी के, क्या मिट्टी की हंडिया चपनी।सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥6॥ यह धूम-धड़क्का साथ लिए क्यों फिरता है जंगल-जंगल?इक तिनका साथ न जावेगा, मौकू़फ़<ref>बंद</ref> हुआ जब अन और ज़ल।घर बार अटारी, चौपारी, क्या ख़ासा, तनसुख और मलमल।क्या चिलमन, पर्दे, फ़र्श नये, क्या लाल पलंग और रंग-महल।सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥7॥ कुछ काम न आवेगातेरे, यह लालो-जमर्रुद<ref>लाल और पुखराज</ref> सीमो-ज़र<ref>चांदी, सोना</ref>।जब पूंजी बाट में बिखरेगी, फिर आन बनेगी जां ऊपर।नौबत, नक़्क़ारे, वान निशां, दौलत हश्मत, फोजें़ लश्कर।क्या मसनद तकिया, मुल्क मकां, क्या चौकी, कुर्सी, तख़्तछतर।सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥8॥ क्यों जी पर बोझ उठाता है, इन गौनों भारी-भारी के।जब मौत का डेरा आन पड़ा, तब कोई नहीं गुनतारी के।क्या साज जड़ाऊ ज़र जेवर, क्या गोटे थान किनारी के।क्या घोड़े ज़ीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अमारी के।सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥9॥ मग़रूर<ref>घमंडी</ref> न हो तलवारों पर, मत फूल भरोसे ढालों के।सब पट्टा तोड़ के भागेंगे, मुंह देख अजल के भालों के॥क्या डिब्बे मोती हीरों के, क्या ढेर ख़जाने मालों के।क्या बुग़चे ताश<ref>एक प्रकार का छपा हुआ ज़री का रेशमी कपड़ा</ref> मुशज्जर<ref>वह कपड़ा जिस पर पेड़ों के डिजाइन हो</ref> के क्या तख़्ते शाल दुशालों के॥सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा॥10॥ क्या सख़्त मकां बनवाता है, ख़म तेरे तन का है पोला।तू ऊंचे कोट उठाता है, वां गोर<ref>क़ब्र</ref> गढ़े ने मुंह खोला॥क्या रैनी<ref>किले की छोटी दीवार</ref> खं़दक रंद<ref>दीवारों के वह सूराख जिनमें से बन्दूकों की मार की जाय</ref> बड़े, क्या बुर्ज कंगूरा अनमोला।गढ़, कोट, रहक़ला<ref>गाड़ी जिस पर रख कर तोप ले जाई जाती है</ref> तोप क़िला, क्या शीशा दारु और गोला॥सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥11॥ हर आन नफ़ा और टोटे में, क्यों मरता फिरता है बन-बन।टुक ग़ाफ़िल दिल में सोच ज़रा, है साथ लगा तेरे दुश्मन।क्या लौंडी बांदी, दाईदिदा<ref>बूढ़ी नौकरानी</ref>, क्या बंदा चेला नेक-चलन।क्या, मन्दिर, मस्जिद, ताल-कुआं, क्या खेती बाड़ी बाग़ चमन॥सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥12॥ जब मर्ग<ref>मौत</ref> फिरा कर चाबुक को, यह बैल बदन का हाँकेगा।कोई नाज समेटेगा तेरा, कोई गौन सिये और टाँकेगा॥हो ढेर अकेला जंगल में, तू ख़ाक लहद<ref>क़ब्र</ref> की फाँकेगा।उस जंगल में फिर आह ‘नज़ीर’ एक भुनगा आन न झाँकेगा।:सब ठाठ पड़ा रह जावेगा , जब लाद चलेगा बंजाराबंजारा॥13॥
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