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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
|अनुवादक=|संग्रह = तुम्हे सौंपता हूँ / त्रिलोचन
}}
फ़ेरु {{KKCatKavita}}<poem>फेरु अमरेथू रहता है
वह कहार है
राग रंग में ही रहता है
उसकी सारी आकान्क्षाएं आकाँक्षाएँ - अभिलाषाएंअभिलाषाएँ
बहिर्मुखी हैं
इसलिए तो
वह कलकत्ते चला गया था
जब से लौटा है
उदास ही अब रहता है। है ।
ठकुराइन तो बरस बिताकर
कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है
काशी बड़ी भली नगरी है
वहां वहाँ पवित्र लोग रहते हैं
फेरू भी सुनता रहता है।है ।</poem>