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"फेरु / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
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− | कुछ दिन बीते | + | कुछ दिन बीते |
− | अपनी ही ठकुराइन को ले | + | अपनी ही ठकुराइन को ले |
− | वह कलकत्ते चला गया था | + | वह कलकत्ते चला गया था |
− | जब से लौटा है | + | जब से लौटा है |
− | उदास ही अब रहता | + | उदास ही अब रहता है । |
− | ठकुराइन तो बरस बिताकर | + | ठकुराइन तो बरस बिताकर |
− | वापस आई | + | वापस आई |
− | कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है | + | कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है |
− | काशी बड़ी भली नगरी है | + | काशी बड़ी भली नगरी है |
− | + | वहाँ पवित्र लोग रहते हैं | |
− | फेरू भी सुनता रहता | + | फेरू भी सुनता रहता है । |
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18:56, 13 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
फेरु अमरेथू रहता है
वह कहार है
काकवर्ण है
सृष्टि वृक्ष का
एक पर्ण है
मन का मौजी
और निरंकुश
राग रंग में ही रहता है
उसकी सारी आकाँक्षाएँ - अभिलाषाएँ
बहिर्मुखी हैं
इसलिए तो
कुछ दिन बीते
अपनी ही ठकुराइन को ले
वह कलकत्ते चला गया था
जब से लौटा है
उदास ही अब रहता है ।
ठकुराइन तो बरस बिताकर
वापस आई
कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है
काशी बड़ी भली नगरी है
वहाँ पवित्र लोग रहते हैं
फेरू भी सुनता रहता है ।