लेती हैं मृदल हिलोरें?
बस गयी गई एक बस्ती हैं है
स्मृतियों की इसी हृदय में
नक्षत्र लोक फैला है
जैसे इस नील निलय में।
ये सब स्फुलिंग स्फुर्लिंग हैं मेरी
इस ज्वालामयी जलन के
कुछ शेष चिह्न हैं केवल
मेरे उस महा मिलन महामिलन के।
शीतल ज्वाला जलती हैं
ईधन होता दृग जल का
यह व्यर्थ साँस चल-चल कर
करती हैं काम अनिल अनल का।
बाड़व ज्वाला सोती थी
छिल-छिल कर छाले फोड़े
मल-मल कर मृदुल चरण से
धुल-धुल कर बह वह रह जाते आँसू करुणा के कण जल से।
इस विकल वेदना को ले
टुकड़ी आँसू से गीली।
अवकाश भला हैं है किसको,
सुनने को करुण कथाएँ
बेसुध जो अपने सुख से
हैं बढ़ी जटा-सी कैसी
उड़ती हैं धूल हृदय में
किसकी विभूति हैं है ऐसी?
जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छायी छाई
दुर्दिन में आँसू बनकर
वह आज बरसने आयी। आई।
मेरे क्रन्दन में बजती
झंझा झकोर गर्जन था
बिजली थी सी थी नीरदमाला,
पाकर इस शून्य हृदय को
सबने आ डेरा डाला।
बिजली माला पहने फिर
मुसक्याता मुसकाता था आँगन में हाँ, कौन बरस बरसा जाता था
रस बूँद हमारे मन में?
उज्जवल उपहार चढायें।
गौरव था , नीचे आये आए
प्रियतम मिलने को मेरे
मै इठला उठा अकिंचन
देखे ज्यों स्वप्न सवेरे।
मधु राका मुसक्याती मुसकाती थी
पहले देखा जब तुमको
परिचित से जाने कब के
निर्झर-सा झिर झिर करता
माधवी कुंज कुँज छाया में
चेतना बही जाती थी
हो मन्त्र मुग्ध मन्त्रमुग्ध माया में।
पतझड़ था, झाड़ खड़े थे
सूखी-सी फूलवारी में
किसलय नव कुसुम बिछा कर
आये आए तुम इस क्यारी में।
शशि मुख पर घूँघट डाले , अंचल में चपल चमक-सी आँखों अँचल मे काली पुतली दीप छिपाए।पुतली जीवन की गोधूली में श्याम झलक-सी। ,कौतूहल से तुम आए।
</poem>