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"कपास के पौधे / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार
 
कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार
 
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जैसे असंख्य लोग बैठ गए हों
जैसे असंख्य लोग बैठ गये हों
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छतरियाँ खोलकर
 
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पौधों को नहीं पता
 
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उनके किसान ने कर ली है आत्महत्या
 
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कोई नहीं आएगा उन्हें अगोरने
कोई नहीं आयेगा उन्हें अगोरने
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कोई नहीं ले जाएगा खलिहान तक
 
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कोई नहीं ले जायेगा खलिहान तक
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सोच रहे हैं पौधे
 
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उनसे निकलेगी धूप-सी रुई
 
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धुनी जाएगी
धुनी जायेगी
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बनेगी बच्चों का झबला
 
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नौगजिया धोती
 
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पौधे नहीं जानते
 
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कि बुनकर ने भी कर ली है ख़ुदकुशी अबके बरस
कि बुनकर ने भी कर ली है खुदकुशी अबके बरस
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सावन की बदरियाई धूप में
 
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बढ़े जा रहे हैं कपास के ये पौधे
 
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जैसे बेटी बिन माँ-बाप की
जैसे बेटी बिन मां-बाप की.
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16:59, 19 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार
जैसे असंख्य लोग बैठ गए हों
छतरियाँ खोलकर

पौधों को नहीं पता
उनके किसान ने कर ली है आत्महत्या
कोई नहीं आएगा उन्हें अगोरने
कोई नहीं ले जाएगा खलिहान तक

सोच रहे हैं पौधे
उनसे निकलेगी धूप-सी रुई
धुनी जाएगी
बनेगी बच्चों का झबला
नौगजिया धोती

पौधे नहीं जानते
कि बुनकर ने भी कर ली है ख़ुदकुशी अबके बरस

सावन की बदरियाई धूप में
बढ़े जा रहे हैं कपास के ये पौधे
जैसे बेटी बिन माँ-बाप की ।