Changes

|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=पृथ्वी के लिए तो रूको / विजयशंकर चतुर्वेदी
}}
{{KKAnthologyVarsha}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार
जैसे असंख्य लोग बैठ गये गए होंछतरियां छतरियाँ खोलकर
पौधों को नहीं पता
उनके किसान ने कर ली है आत्महत्या
कोई नहीं आयेगा आएगा उन्हें अगोरनेकोई नहीं ले जायेगा जाएगा खलिहान तक
सोच रहे हैं पौधे
उनसे निकलेगी धूप-सी रुई
धुनी जायेगीजाएगी
बनेगी बच्चों का झबला
नौगजिया धोती
पौधे नहीं जानते
कि बुनकर ने भी कर ली है खुदकुशी ख़ुदकुशी अबके बरस
सावन की बदरियाई धूप में
बढ़े जा रहे हैं कपास के ये पौधे
जैसे बेटी बिन मांमाँ-बाप की.
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits