भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाने क्यों हम निभा रहे हैं बेमन ये दस्तूर / सोनरूपा विशाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोनरूपा विशाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:23, 21 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

 
अपने हैं बस थोड़े से हम बाहर के भरपूर
जाने क्यों ये निभा रहे हैं बेमन ये दस्तूर

जैसे लम्बी बाट जोहकर नभ में खिलती भोर
हम भी ख़ुद से मिलने आते अपने मन की ओर

कभी लिए मन में कोलाहल कभी लिए सन्तूर।

अपना जीवन जीते हैं जो औरों के ढंग से
दूर रहा करते हैं फिर वो अपने ही संग से

अपनी ही आंखों को चुभते होकर चकनाचूर।

हर पल आओ जी लें जैसे अंतिम है ये पल
सत्य छुपा है अपने भीतर बाक़ी सब है छल

इसी नज़रिए से मिल पायेगा जीवन को नूर ।