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मैं शहर हूँ / निशान्त जैन

9 bytes added, 13:42, 1 सितम्बर 2020
मुस्कानों का बोझा ढोए,
धुन में अपनी खोए-खोए
ढूँढता कुछ हर पहर हूँ।
मैं शहर हूँ।
 
बेमुरव्वत भीड़ में,
परछाइयों की निगहबानी,
मन-मन में ही घुला जहर हूँ।
मैं शहर हूँ।
 
मन के नाजुक से मौसम में,
भारी-भरकम बोझ उठाए,
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