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उठ चल मेरे मन / शार्दुला नोगजा

67 bytes added, 18:35, 6 सितम्बर 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>हो विलग सबसे, अकेला चल पड़ा तू
एक अपनी ही नयी दुनिया बसाने
तूफ़ान निर्मम रास्ते के शीर्य तुझ को
कर गहेंगी स्मृतियाँ तेरे बालपन की
ओ मेरे मन! राह से ना विलग होना
खींचे खींचें अगर रंगीनियाँ तुझको चमन की
एक मुठ्ठी धरधरा, एक टुकड़ा गगन का
एक दीपक की अगन भर ताप निश्छल
नेह जल बन उमड़ता हिय में, दृगों में
उठ चल मेरे मन !
चल !
 
</poem>
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