Changes

धूप में निकलो / निदा फ़ाज़ली

186 bytes added, 13:43, 11 अक्टूबर 2020
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=
|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
धूप में निकलो घटाओं में
 
नहाकर देखो
 
ज़िन्दगी क्या है, किताबों को
 
हटाकर देखो |
 
सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया
 
नहीं देखी जाती
 दिल की धड़कन को भी बीनाई* 
बनाकर देखो |
 
पत्थरों में भी ज़बाँ होती है
 
दिल होते हैं
 
अपने घर के दरो-दीवार
 सजाकर देखो
वो सितारा है चमकने दो
 
यूँ ही आँखों में
 
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म
 
बनाकर देखो |
 
फ़ासला नज़रों का धोका भी
 
तो हो सकता है
 
चाँद जब चमके तो ज़रा हाथ
 
बढाकर देखो |
'''ज्योति'''------------------------------* ज्योति</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,172
edits