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"नयी-नयी आँखें / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
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नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है<br>
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मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।<br><br>
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सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।
  
मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं<br>
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चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।<br><br>
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जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।
  
मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे<br>
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हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।<br><br>
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जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
 
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चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं<br>
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हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में<br>
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जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।<br><br>
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19:22, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।

मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।

मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।

चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।

हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।