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"नहीं यह भी नहीं / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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यह भी नहीं | यह भी नहीं | ||
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यह भी नहीं, वोह तो | यह भी नहीं, वोह तो | ||
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न जाने कौन थे | न जाने कौन थे | ||
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यह सब के सब तो मेरे जैसे हैं | यह सब के सब तो मेरे जैसे हैं | ||
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सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं | सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं | ||
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सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं | सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं | ||
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जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर | जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर | ||
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मेरी आंखों के आगे | मेरी आंखों के आगे | ||
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मेरे बच्चों को जलाया था | मेरे बच्चों को जलाया था | ||
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वोह तो कोई और थे | वोह तो कोई और थे | ||
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वोह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब | वोह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब | ||
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मगर हाँ | मगर हाँ | ||
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पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ | पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ | ||
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वो उस जंगल से आये थे | वो उस जंगल से आये थे | ||
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जहाँ की औरतों की गोद में | जहाँ की औरतों की गोद में | ||
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बच्चे नहीं हँसते | बच्चे नहीं हँसते | ||
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22:29, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
नहीं यह भी नहीं
यह भी नहीं
यह भी नहीं, वोह तो
न जाने कौन थे
यह सब के सब तो मेरे जैसे हैं
सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं
सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं
जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर
मेरी आंखों के आगे
मेरे बच्चों को जलाया था
वोह तो कोई और थे
वोह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब
मगर हाँ
पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ
वो उस जंगल से आये थे
जहाँ की औरतों की गोद में
बच्चे नहीं हँसते