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मुझको भी तरकीब सिखा / गुलज़ार

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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=गुलज़ार]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह = [[Category:गुलज़ार‎]]}} {{KKCatNazm}}~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~<poem>मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
 जब कोई तागा टूट गया या खत्म ख़त्म हुआ फिर से बांध बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उसमेउसमें
आगे बुनने लगते हो
 
तेरे इस ताने में लेकिन
 इक भी गांठ गाँठ गिरह बुन्तर की 
देख नहीं सकता कोई
मैंने तो एक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
मैनें तो एक बार बुना था एक ही रिश्ता……………………………………………'''[[मलाई पनि सिकाइदेऊ तरिका / गुलजार / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ]]'''
लेकिन उसकी सारी गिराहें
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे</poem>
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