भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझको भी तरकीब सिखा / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=गुलज़ार | |
− | + | |संग्रह = | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatNazm}} | |
+ | <poem> | ||
+ | मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे | ||
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते | अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते | ||
− | + | जब कोई तागा टूट गया या ख़त्म हुआ | |
− | जब कोई तागा टूट गया या | + | फिर से बाँध के |
− | + | और सिरा कोई जोड़ के उसमें | |
− | फिर से | + | |
− | + | ||
− | और सिरा कोई जोड़ के | + | |
− | + | ||
आगे बुनने लगते हो | आगे बुनने लगते हो | ||
− | |||
तेरे इस ताने में लेकिन | तेरे इस ताने में लेकिन | ||
− | + | इक भी गाँठ गिरह बुन्तर की | |
− | इक भी | + | |
− | + | ||
देख नहीं सकता कोई | देख नहीं सकता कोई | ||
+ | मैंने तो एक बार बुना था एक ही रिश्ता | ||
+ | लेकिन उसकी सारी गिरहें | ||
+ | साफ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे | ||
+ | मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे | ||
− | + | …………………………………………… | |
+ | '''[[मलाई पनि सिकाइदेऊ तरिका / गुलजार / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ]]''' | ||
− | |||
− | + | </poem> |
10:01, 4 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़त्म हुआ
फिर से बाँध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ गिरह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैंने तो एक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
……………………………………………
यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ