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दुआ / परवीन शाकिर
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चांदनी
उस दरीचे को छूकर
मेरे नीम रोशन झरोखे में
आये
आए
, न
आये
आए
,
मगर
मेरी पलकों की तकदीर से नींद चुनती रहे
और उस
आंख
आँख
के
ख्वाब
ख़्वाब
बुनती रहे।
अनिल जनविजय
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