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"दुआ / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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मेरे नीम रोशन झरोखे में आये, न आये,
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मगर
 
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मेरी पलकों की तकदीर से नींद चुनती रहे
 
मेरी पलकों की तकदीर से नींद चुनती रहे
और उस आंख के ख्‍वाब बुनती रहे।
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और उस आँख के ख़्वाब बुनती रहे।

14:08, 7 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण

चांदनी

उस दरीचे को छूकर

मेरे नीम रोशन झरोखे में आए, न आए,

मगर

मेरी पलकों की तकदीर से नींद चुनती रहे

और उस आँख के ख़्वाब बुनती रहे।