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"अपूर्ण / दीप्ति मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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मुझ आत्मा को विलीन होना है अभी तुममें। | मुझ आत्मा को विलीन होना है अभी तुममें। | ||
मेरा स्थान अभी रिक्त है तुम्हारे भीतर। | मेरा स्थान अभी रिक्त है तुम्हारे भीतर। | ||
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तुममें समा कर मैं शायद पूर्ण हो जाऊँ; | तुममें समा कर मैं शायद पूर्ण हो जाऊँ; | ||
किन्तु तुम? | किन्तु तुम? | ||
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मुझ जैसी कितनी आत्माओं की रिक्तता से | मुझ जैसी कितनी आत्माओं की रिक्तता से | ||
भरे हो तुम । | भरे हो तुम । | ||
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रीतापन , खालीपन | रीतापन , खालीपन | ||
जाने कब तक ? | जाने कब तक ? | ||
जाने कब तक ? | जाने कब तक ? | ||
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14:05, 7 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
हे सर्वज्ञाता, सर्वव्यापी, सार्वभौम !
क्या सच में तुम सम्पूर्ण हो ?
हाँ कहते हो तो सुनो --
सकल ब्रह्माण्ड में
यदि कोई सर्वाधिक अपूर्ण है
तो वह तुम हो ।
होकर भी नहीं हो तुम।
बहुत कुछ शेष है अभी,
बहुत कुछ होना है जो घटित होना है।
उसके बाद ही तुम्हें सम्पूर्ण होना है।
हे परमात्मा !
मुझ आत्मा को विलीन होना है अभी तुममें।
मेरा स्थान अभी रिक्त है तुम्हारे भीतर।
फिर तुम सम्पूर्ण कैसे हुए?
तुममें समा कर मैं शायद पूर्ण हो जाऊँ;
किन्तु तुम?
तुम तो तब भी अपूर्ण ही रहोगे
क्योंकि --
मुझ जैसी कितनी आत्माओं की रिक्तता से
भरे हो तुम ।
जाने कब पूर्ण रूप से भरेगा तुम्हारा यह--
रीतापन , खालीपन
जाने कब तक ?
जाने कब तक ?