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पर हुआ घर आना नहीं। | पर हुआ घर आना नहीं। |
11:23, 8 अक्टूबर 2008 का अवतरण
आँख ने देखा पर वाणी ने बखाना नहीं।
भावना ने छुआ पर मन ने पहचाना नहीं।
राह मैनें बहुत दिन देखी, तुम उस पर से आए भी, गए भी,
--कदाचित, कई बार--
पर हुआ घर आना नहीं।
डार्टिंगटन हाल, टौटनेस
१८ अगस्त १९५५