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"अजीब बात / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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जगहें खत्म हो जाती हैं
 
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जब हमारी वहॉं जाने की इच्छाएं
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लेकिन जिनकी इच्छाएं खत्म हो जाती हैं
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वे ऐसी जगहों में बदल जाते हैं
 
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जहॉं कोई आना नहीं चाहता
 
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कहते हैं रास्ता भी एक जगह होता है
 
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जिस पर जिन्दगी गुजार देते हैं लोग
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और रास्ते पॉंवों से ही निकलते हैं
 
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पॉंव शायद इसीलिए पूजे जाते हैं
 
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हाथों को पूजने की कोई परंपरा नहीं  
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हाथों को पूजने की कोई परम्परा नहीं  
 
हमारी संस्कृति में
 
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ये कितनी अजीब बात है।
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ये कितनी अजीब बात है ।
 
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15:30, 24 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

जगहें खत्म हो जाती हैं
जब हमारी वहॉं जाने की इच्छाएँ
ख़त्म हो जाती हैं
लेकिन जिनकी इच्छाएँ ख़त्म हो जाती हैं
वे ऐसी जगहों में बदल जाते हैं
जहॉं कोई आना नहीं चाहता

कहते हैं रास्ता भी एक जगह होता है
जिस पर ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं लोग
और रास्ते पॉंवों से ही निकलते हैं
पॉंव शायद इसीलिए पूजे जाते हैं
हाथों को पूजने की कोई परम्परा नहीं
हमारी संस्कृति में
ये कितनी अजीब बात है ।