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नई सोच से / रामकिशोर दाहिया

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1- नई सोच से <poem>
भूँजी हुई
मछलियाँ हम हैं
आगी क्या! पानी का डर है !
दहरा१ दहरा नहीं
मिले जीवन भर
डबरे रहे हमारे घर हैं
कुछ देखें तनकर
कौन तोड़ते लोग कमर हैं!
-रामकिशोर दाहिया
टिप्पणी : दहरा- पानी के भराव का गहरा गड्ढा।
 -रामकिशोर दाहिया </poem>