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"हाइकु / शिवजी श्रीवास्तव / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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कड़ी धूप में खड़ा
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झरी चाँदनी
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झरे हरसिंगार
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धरा निहाल।
  
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प्राची है लाल
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धरती ने सजाई
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अपनी माँग।
  
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पिर्थी न सजैयाली
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अपड़ी स्यूँद
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स्नेहिल स्पर्श
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रच रहे नयन
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दिल का दर्द।
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माया माँ छुएँ
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रचणी छन आँखी
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हिरदै पिड़ा
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जीवन -संध्या
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हे! अस्ताचलगामी
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बाँट लो दर्द।
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जिंदगी- रूम्क
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हे डुबदरा सुर्ज
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बाँट दि पिड़ा
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मन को मार
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झेल रहे हैं रिश्ते
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व्यंग्य बौछार।
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मन मारी कि
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झेंन्ना छन रिस्ता त
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टौंखाँणु मार
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सुनो धरती
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हवा- पानी की रक्षा
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मनु का काम।
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हवा-पाणी रगछा
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मन्ख्यों कु काम
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सहमी चिड़ी
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पाकर प्रताड़ना
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सबसे भिड़ी।
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डौंरीं प्वथली
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पै कैं प्रताणन्ना जु
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सब्बु सि लौड़ी
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शब्दों से कोरे
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प्रेम -ग्रन्थ के पन्ने
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सुवास भरे।
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मायै पोथी का पन्ना
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गिरि से गिरी
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गिरकर भी चली
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कर्मठ सरि।
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लमडीक बि चन्नी
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किसाण गंगा
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स्वप्न का सार
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मन की चौखट को
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करे न पार।
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स्वीणा कु सार
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मना संघाड़ सन
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करू न पार।
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13:57, 3 मई 2021 का अवतरण

1
गुलमोहर
कड़ी धूप में खड़ा
वीर सैनिक।
 
गुलमोर च
तैला घाम माँ खड़ू
वीर फौजी-सी
2
विद्या का ओज
हरी पत्तियों पर
कोमल ओस।

बिद्या कु ओज
हौरी पत्तियों परैं
कुंगळी ओंस
3
झरी चाँदनी
झरे हरसिंगार
धरा निहाल।

खते जुनाळि
झौड़ी हरसिंगार
पिर्थी बग्छट
4
प्राची है लाल
धरती ने सजाई
अपनी माँग।

पुरब लाल
पिर्थी न सजैयाली
अपड़ी स्यूँद
5
स्नेहिल स्पर्श
रच रहे नयन
दिल का दर्द।

माया माँ छुएँ
रचणी छन आँखी
हिरदै पिड़ा
6
जीवन -संध्या
हे! अस्ताचलगामी
बाँट लो दर्द।

जिंदगी- रूम्क
हे डुबदरा सुर्ज
बाँट दि पिड़ा
7
मन को मार
झेल रहे हैं रिश्ते
व्यंग्य बौछार।

मन मारी कि
झेंन्ना छन रिस्ता त
टौंखाँणु मार
8
सुनो धरती
हवा- पानी की रक्षा
मनु का काम।

सूँण पिरथी
हवा-पाणी रगछा
मन्ख्यों कु काम
9
सहमी चिड़ी
पाकर प्रताड़ना
सबसे भिड़ी।

डौंरीं प्वथली
पै कैं प्रताणन्ना जु
सब्बु सि लौड़ी
10
शब्दों से कोरे
प्रेम -ग्रन्थ के पन्ने
सुवास भरे।

सब्दु सि क्वारा
मायै पोथी का पन्ना
खुसबो भर्यां
11
गिरि से गिरी
गिरकर भी चली
कर्मठ सरि।

पाड़ू-लमडी
लमडीक बि चन्नी
किसाण गंगा
12
स्वप्न का सार
मन की चौखट को
करे न पार।

स्वीणा कु सार
मना संघाड़ सन
करू न पार।
-0-