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<poem>
भागदौड़ की
रोटी देखें
ढले साँझ हम
लौटे लिये निवाला
रिश्ते-नाते
मीत, पड़ोसी
कम पड़ते हैं
चौबिस घण्टे आधे
घण्टे, घड़ी,
मिनट सब तड़के
खुशी के पल छिन
लम्बे पाँव लगाते
हुकुम बजाकर
बीवी- बच्चे