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"माँ को ख़त / विवेक चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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माँ ! अक्टूबर के कटोरे में
रखी धूप की खीर पर
पंजा मारने लगी है सुबह
ठण्ड की बिल्ली ...
अपना ख़याल रखना माँ !