"आन मिलो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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− | कान तरसते हैं सदा, सुनें तुम्हारे बोल। | + | '''कान तरसते हैं सदा, सुनें तुम्हारे बोल।''' |
− | उर | + | उर -तिजौरी बन्द किया, तू हीरा अनमोल। |
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अंधे देखें क्या भला, तेरा रूप अनूप। | अंधे देखें क्या भला, तेरा रूप अनूप। | ||
− | मन सागर विस्तार है, तन सौरभ की धूप। | + | मन सागर- विस्तार है, तन सौरभ की धूप। |
115 | 115 | ||
− | साँस- साँस बन बाँसुरी, यही छेड़ती तान। | + | '''साँस- साँस बन बाँसुरी, यही छेड़ती तान।''' |
सारे सुख तुमको मिलें, सारे सब वरदान। | सारे सुख तुमको मिलें, सारे सब वरदान। | ||
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गिरि-शिखरों की ओट से, मुझको रहा निहार। | गिरि-शिखरों की ओट से, मुझको रहा निहार। | ||
− | युगों-युगों से टेरता, वह तो मेरा | + | युगों-युगों से टेरता, वह तो मेरा प्यार। |
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मैं तो वन -वन घूमता, खोजूँ अपना मीत। | मैं तो वन -वन घूमता, खोजूँ अपना मीत। | ||
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जब तक ये जीवन रहे, रखना अपने पास। | जब तक ये जीवन रहे, रखना अपने पास। | ||
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− | + | तेरे नैनों में रहूँ , बनकर गीली कोर। | |
− | पलकें चूमूँ प्यार से, बनकर उजली | + | पलकें चूमूँ प्यार से, बनकर उजली भोर। |
120 | 120 | ||
ईश्वर जो मुझसे कहे, माँगो इक वरदान। | ईश्वर जो मुझसे कहे, माँगो इक वरदान। | ||
− | ''जग में मेरी प्राण को, दे दो सुख | + | ''जग में मेरी प्राण को, दे दो सुख सम्मान।'' |
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अहर्निश यही कामना , सुख का हो संगीत। | अहर्निश यही कामना , सुख का हो संगीत। | ||
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123 | 123 | ||
रंग रचे नित तूलिका, उर के सारे रंग। | रंग रचे नित तूलिका, उर के सारे रंग। | ||
− | जग छूटे सारा भले, बस तुम रहना | + | जग छूटे सारा भले, बस तुम रहना संग। |
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मेरी झोली है खुली, देना सारे शूल। | मेरी झोली है खुली, देना सारे शूल। | ||
प्रभु प्रिय के आँचल में, भरना केवल फूल। | प्रभु प्रिय के आँचल में, भरना केवल फूल। | ||
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− | जीवन है गहरी नदी,नहीं सूझता कूल। | + | जीवन है गहरी नदी, नहीं सूझता कूल। |
− | तुझमें ही है डूबना, | + | तुझमें ही है डूबना, तुम ही जीवन-मूल। |
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− | मनसा, वाचा कर्मणा, अर्पित भाव विचार। | + | मनसा, वाचा, कर्मणा, अर्पित भाव- विचार। |
− | सफल हुआ जीवन सभी , पाकर तेरा प्यार।। | + | सफल हुआ जीवन सभी, पाकर तेरा प्यार।। |
127 | 127 | ||
आँखों में तुम जागती, बनकर दर्शन -प्यास। | आँखों में तुम जागती, बनकर दर्शन -प्यास। | ||
− | बची हुई है आज भी, | + | बची हुई है आज भी, पुनर्मिलन की आस। |
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− | उड़कर पहुँचूँ द्वार | + | उड़कर पहुँचूँ द्वार पे, अकुलाता मन मीत। |
− | + | सदा बिछोड़ा ही मिले, जिनसे सच्ची प्रीत। | |
129 | 129 | ||
− | सन्नाटा गहरा हुआ, मन एकाकी | + | सन्नाटा गहरा हुआ, मन एकाकी-मौन। |
समय मिले तो सोचिए, तुझ बिन मेरा कौन।। | समय मिले तो सोचिए, तुझ बिन मेरा कौन।। | ||
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− | तुम्हीं प्रेम साकार हो, | + | तुम्हीं प्रेम साकार हो, तुम हो मन का नूर। |
केवल इतनी प्रार्थना, संकट हों सब दूर।। | केवल इतनी प्रार्थना, संकट हों सब दूर।। | ||
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− | तुम मंदिर का दीप हो, प्राणों- बसी सुवास। | + | '''तुम मंदिर का दीप हो, प्राणों- बसी सुवास।''' |
तन से कोसों दूर हो, फिर भी मन के पास। | तन से कोसों दूर हो, फिर भी मन के पास। | ||
132 | 132 | ||
'''प्राण कण्ठ में हैं लगे, दर्शन की है प्यास।''' | '''प्राण कण्ठ में हैं लगे, दर्शन की है प्यास।''' | ||
− | + | आन मिलो जैसे बने, यही बची है आस। | |
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18:08, 12 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण
113
कान तरसते हैं सदा, सुनें तुम्हारे बोल।
उर -तिजौरी बन्द किया, तू हीरा अनमोल।
114
अंधे देखें क्या भला, तेरा रूप अनूप।
मन सागर- विस्तार है, तन सौरभ की धूप।
115
साँस- साँस बन बाँसुरी, यही छेड़ती तान।
सारे सुख तुमको मिलें, सारे सब वरदान।
116
गिरि-शिखरों की ओट से, मुझको रहा निहार।
युगों-युगों से टेरता, वह तो मेरा प्यार।
117
मैं तो वन -वन घूमता, खोजूँ अपना मीत।
मधुर अधर या भाल पर, लिख ना पाए प्रीत
118
मैं तेरे मन में रहूँ, जैसे तन में साँस।
जब तक ये जीवन रहे, रखना अपने पास।
119
तेरे नैनों में रहूँ , बनकर गीली कोर।
पलकें चूमूँ प्यार से, बनकर उजली भोर।
120
ईश्वर जो मुझसे कहे, माँगो इक वरदान।
जग में मेरी प्राण को, दे दो सुख सम्मान।
121
अहर्निश यही कामना , सुख का हो संगीत।
हर पल तेरे साथ हो, तेरा सच्चा मीत।
122
बँधी हुई हर साँस से, जब तक जीवन- डोर।
थामे रखना प्रेम से, इसके दोनों छोर।
123
रंग रचे नित तूलिका, उर के सारे रंग।
जग छूटे सारा भले, बस तुम रहना संग।
124
मेरी झोली है खुली, देना सारे शूल।
प्रभु प्रिय के आँचल में, भरना केवल फूल।
125
जीवन है गहरी नदी, नहीं सूझता कूल।
तुझमें ही है डूबना, तुम ही जीवन-मूल।
126
मनसा, वाचा, कर्मणा, अर्पित भाव- विचार।
सफल हुआ जीवन सभी, पाकर तेरा प्यार।।
127
आँखों में तुम जागती, बनकर दर्शन -प्यास।
बची हुई है आज भी, पुनर्मिलन की आस।
128
उड़कर पहुँचूँ द्वार पे, अकुलाता मन मीत।
सदा बिछोड़ा ही मिले, जिनसे सच्ची प्रीत।
129
सन्नाटा गहरा हुआ, मन एकाकी-मौन।
समय मिले तो सोचिए, तुझ बिन मेरा कौन।।
130
तुम्हीं प्रेम साकार हो, तुम हो मन का नूर।
केवल इतनी प्रार्थना, संकट हों सब दूर।।
131
तुम मंदिर का दीप हो, प्राणों- बसी सुवास।
तन से कोसों दूर हो, फिर भी मन के पास।
132
प्राण कण्ठ में हैं लगे, दर्शन की है प्यास।
आन मिलो जैसे बने, यही बची है आस।