<poem>
एक दिन मैंने
मैन मौन में शब्द को धँसाया था
और एक गहरी पीड़ा,
एक गहरे आनंद में,
विवश कुछ बोला था;
सुना, मेरा वह बोलना
दुनियाँ दुनिया में काव्य कहलाया था।
आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ,
अब न पीड़ा है न आनंद है
विस्मरण के सिन्धु में
डूबता -सा जाता हूँ,
देखूँ,
तह तक