"मैं तुझे फिर मिलूँगी / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर
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मैं तुझे फिर मिलूँगी | मैं तुझे फिर मिलूँगी | ||
− | कहाँ | + | कहाँ कैसे पता नहीं |
− | शायद तेरे | + | शायद तेरे कल्पनाओं |
− | + | की प्रेरणा बन | |
तेरे केनवास पर उतरुँगी | तेरे केनवास पर उतरुँगी | ||
या तेरे केनवास पर | या तेरे केनवास पर | ||
एक रहस्यमयी लकीर बन | एक रहस्यमयी लकीर बन | ||
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी | ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी | ||
+ | मैं तुझे फिर मिलूँगी | ||
+ | कहाँ कैसे पता नहीं | ||
− | या | + | या सूरज की लौ बन कर |
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी | तेरे रंगो में घुलती रहूँगी | ||
− | या रंगो | + | या रंगो की बाँहों में बैठ कर |
− | तेरे केनवास | + | तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी |
पता नहीं कहाँ किस तरह | पता नहीं कहाँ किस तरह | ||
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी | पर तुझे ज़रुर मिलूँगी | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 29: | ||
या फिर एक चश्मा बनी | या फिर एक चश्मा बनी | ||
जैसे झरने से पानी उड़ता है | जैसे झरने से पानी उड़ता है | ||
− | मैं पानी की | + | मैं पानी की बूंदें |
तेरे बदन पर मलूँगी | तेरे बदन पर मलूँगी | ||
− | और एक | + | और एक शीतल अहसास बन कर |
तेरे सीने से लगूँगी | तेरे सीने से लगूँगी | ||
− | + | मैं और तो कुछ नहीं जानती | |
− | मैं और कुछ नहीं जानती | + | |
पर इतना जानती हूँ | पर इतना जानती हूँ | ||
कि वक्त जो भी करेगा | कि वक्त जो भी करेगा | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 41: | ||
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है | तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है | ||
− | पर | + | पर यादों के धागे |
− | कायनात के | + | कायनात के लम्हें की तरह होते हैं |
+ | मैं उन लम्हों को चुनूँगी | ||
+ | उन धागों को समेट लूंगी | ||
+ | मैं तुझे फिर मिलूँगी | ||
+ | कहाँ कैसे पता नहीं | ||
− | + | मैं तुझे फिर मिलूँगी!! | |
− | मैं तुझे फिर मिलूँगी !! | + | </poem> |
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17:23, 16 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
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मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी
मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी!!