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अकाल / अनिल जनविजय

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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=अनिल जनविजय]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे / अनिल जनविजय]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}{{KKCatKavita}}<poem>
अकाल
 
जब आता है
 
अपने साथ लाता है
 
अड़ियल बैल से बुरे दिन
 
अकाल भेद नहीं करता
 
खेत, पेड़, पशु और आदमी में
 
बाज की तरह आकाश से उतरता है
 
हरे-भरे खेतों की छाती पर
 
फसल को जकड़ता है पंजों में
 
खेत से खलिहान तक सरकता है
 
अँधेरे की तरह छा जाता है
 
लचीली शांत हरी टहनियों पर
 
पत्तियों की नन्ही हथेलियों पर
 
बेख़ौफ़ जम जाता है
 
जड़ तक पहुँचने का मौका ढूँढ़ता है
 
बोझ की तरह लद जाता है
 
पुट्ठेदार गठियाए शरीर पर
 
खिंचते हैं नथुने, फूलता है दम
 
धीरे-धीरे दिखाता है हाथ, उस्ताद
 
धुंध की तरह गिरता है
 
थके हुए उदास पीले चेहरों पर
 
लोगों की आँखों में उतर आता है
 
पेट पर हल्ला बोलता है, शैतान
 
जब भी आता है
 
लाता है बुरे दिन
काल बन जाता है अकाल
कल बन जाता है 1981 में रचित '''लीजिए, अब इस कविता का भोजपुरी में अनुवाद पढ़िए'''  अकाल●●●अकालजाही घरी आवे लाअपना संगे लावेलाअड़ियल बरधा से बिगड़ल दिन
अकाल फरक ना करेला
बधार,माल मवेसी,बिरीछ,मानुख् में
1981 बाज दाखिल असमान से उतरेलालहलहात खेतन के छाती परफसिल के जकड़ेला पनजवन में रचितखेत से खरिहान ले सरकेला अँधियार नीअर मड़ला जालालचकत चुप हरिअर डनटियन परपत्तवन के नान्ह हथेलियन परनिडर जम जालाजरीअन ले पहुँचे के मउका खोजेला बोझा जस लदा जालापुट्ठादार गठियाइंल देही परखिंचेलन स नथुना,फुलेला दमधीमे-धीमे देखावेला हाथ,उस्ताद कुहा जइसन गिरेलाथाकल, मुरझाइल,पीअराइंल मुखन परलोगन के आँखिन में उतर जालापेट पर हल्ला बोलेला,सयतान जे घरीओ आवेलालावेला बिगड़ल दिनकाल बन जाला अकाल '''भोजपुरी में अनुवाद जगदीश नलिन द्वारा'''</poem>
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