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"देशान्तर / शंख घोष / जयश्री पुरवार" के अवतरणों में अंतर
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सोचता हूँ जीवित रहना होगा इसी के बीच । | सोचता हूँ जीवित रहना होगा इसी के बीच । | ||
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मेरे — शरीर को घेरकर | मेरे — शरीर को घेरकर | ||
कितनी कितनी अभिज्ञता उतर आई | कितनी कितनी अभिज्ञता उतर आई | ||
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मृत्यु से ठीक पहले | मृत्यु से ठीक पहले | ||
समझ भी नहीं पाया मैं | समझ भी नहीं पाया मैं | ||
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+ | अपने शरीर का यह बलिदान किया है । | ||
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+ | '''मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार''' | ||
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21:42, 3 जुलाई 2022 के समय का अवतरण
उसके बाद
रास्ते भर बिना कोई बात किए
हम चलते रहे, चलते ही रहे
एक देश से दूसरे देश
एक घर्षण से दूसरे घर्षण की ओर ।
पृथ्वी तो ऐसी ही है ।
सोचता हूँ जीवित रहना होगा इसी के बीच ।
बरगद के पेड़ से लटकने वाली जड़ों की तरह हमारे,
मेरे — शरीर को घेरकर
कितनी कितनी अभिज्ञता उतर आई
अवलम्बनहीन । इतिहासविहीन ।
उसके बाद
भोर होने से कुछ पहले
सीमा रक्षक की गोली सीने पर आकर लगी —
मृत्यु से ठीक पहले
समझ भी नहीं पाया मैं
कि किस देश के लिए मैंने
अपने शरीर का यह बलिदान किया है ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार