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सॉनेट — 9
वहाँ जहाँ लहरें बिखरती हैं व्यग्र चट्टानों पर,
फूटता है स्वच्छ प्रकाश और रूप लेता है गुलाब का,
और जलधि - वृत्त सिमट जाता है कलिकाओं के समूह में,
एक बून्द नीले लवण की गिरती हुई ।
 
ओ चमकीले मेग्नीलिया झाग में फूटते हुए,
चुम्बकीय, क्षणिक जिसकी खिलती और लुप्त होती मृत्यु —
होती है अस्तित्त्वहीनता सदा के लिए :
टूटा हुआ नमक, जलधि की चकाचौंध करती लड़खड़ाहट ।
 
प्रिया ! तुम और मैं, हम साथ में करते हैं पुष्टि शान्ति की,
जबकि सागर कर देता है नष्ट अपनी स्थाई मूर्त्तियाँ,
गिरा देता है अपने तीव्र गति के स्तम्भ और श्वेतता ।
 
क्योंकि उन अदृश्य वस्त्रों को बुनने की प्रक्रिया में,
सरपट भागते जल में, निरन्तर रेत में,
हम निर्मित करते हैं मातृ स्थाई मृदुलता ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य'''
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