{{KKCatDoha}}
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212
चार पैग जो पी गया, भूला जग का बैर।
गिर नाली के कीच में, माँगे सबकी खैर।।
213
राष्ट्रवाद भी खोट है, कुछ कहते मक्कार ।
हर कुटिया-द्वारे गए, ढूँढा -कहाँ सुराज।
जैसी ठठरी कल रही, वैसा पिंजर आज ॥
222
चार पैग जो पी गया, भूला जग का बैर।
गिर नाली के कीच में, माँगे सबकी खैर।।
223
इस जीवन में कब कहाँ , हुई कौन-सी चूक ।
पीर भला कैसे कहें, आज हुए हम मूक ॥
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