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"बावरा अहेरी / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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भोर का बावरा अहेरी
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पहले बिछाता है आलोक की
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* [[बावरा अहेरी (कविता) / अज्ञेय]]
 
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* [[नदी के द्वीप / अज्ञेय]]
लाल-लाल कनियाँ
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* [[शरद की साँझ के पंछी / अज्ञेय]]
 
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पर जब खींचता है जाल को
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बाँध लेता है सभी को साथः
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छोटी-छोटी चिड़ियाँ
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मँझोले परेवे
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बड़े-बड़े पंखी
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डैनों वाले डील वाले
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डौल के बैडौल
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उड़ने जहाज़
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कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
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तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल घुस्सों वाली
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उपयोग-सुंदरी
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बेपनाह कायों कोः
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गोधूली की धूल को, मोटरों के धुँए को भी
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पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि
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रूप-रेखा को
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और दूर कचरा जलाने वाली कल की उद्दण्ड चिमनियों को, जो
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धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को
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हरा देगी !
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बावरे अहेरी रे
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कुछ भी अवध्य नहीं तुझे, सब आखेट हैः
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एक बस मेरे मन-विवर में दुबकी कलौंस को
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दुबकी ही छोड़ कर क्या तू चला जाएगा ?
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ले, मैं खोल देता हूँ कपाट सारे
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मेरे इस खँढर की शिरा-शिरा छेद के
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आलोक की अनी से अपनी,
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गढ़ सारा ढाह कर ढूह भर कर देः
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विफल दिनों की तू कलौंस पर माँज जा
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मेरी आँखे आँज जा
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कि तुझे देखूँ
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देखूँ और मन में कृतज्ञता उमड़ आये
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पहनूँ सिरोपे-से ये कनक-तार तेरे –
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बावरे अहेरी
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19:09, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण

बावरा अहेरी
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रचनाकार अज्ञेय
प्रकाशक
वर्ष
भाषा हिन्दी
विषय
विधा
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ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।