|
|
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | {{KKGlobal}}
| |
− | {{KKRachna
| |
− | |रचनाकार=रमेश क्षितिज
| |
− | |अनुवादक=
| |
− | |संग्रह=अर्को साँझ पर्खेर साँझमा
| |
− | }}
| |
− | {{KKCatNepaliRachna}}
| |
− | <poem>
| |
− | '''सहिद (रातो–१)'''
| |
| | | |
− | इतिहासका पन्नाका क्रममा
| |
− | टाँगिएको त्यो जिसस
| |
− | क्यालेन्डरको मात्र एक दिन उसको
| |
− | अहो ! मान्छे मरेपछि
| |
− | कति कमजोर हुँदोरहेछ !
| |
− |
| |
− |
| |
− | '''इतिहास (कालो–१)'''
| |
− |
| |
− | आफ्नै छोराको मृत्युको खबर सुनेर पनि
| |
− | मञ्चमा नाच्न बाध्य कुनै नर्तकीजस्तो भएर
| |
− | घन्टाघर साक्षी छ !
| |
− | हामी उनै वीर पुर्खाका
| |
− | बहादुर सन्तानहरू हौं ।
| |
− |
| |
− |
| |
− | '''सम्झना (निलो–१) '''
| |
− |
| |
− | वर्षौंदेखि
| |
− | तिमीलाई उही रूपमा पाइरहेछु, गुमाइरहेछु
| |
− | पखेरोको सिरानी हालेर मस्त निदाएका
| |
− | गोरेटोछेउ उभिएर
| |
− | ती गोठालाले फुकेका मुरलीका स्वरमा
| |
− | कतै तिम्रो आवाज सुनिरहेको हुन्छु
| |
− | र उग्रयारहन्छ मेरो सम्झना– अतीतको
| |
− | हरियो चरनमा
| |
− | यी हेर स्मृतिका छरपष्ट तर नओइलिने
| |
− | झन्झन्ब ढ्दै जाने कलिला दुबोहरू ।
| |
− |
| |
− |
| |
− | '''आग्रह (सेतो–१) '''
| |
− |
| |
− | बाहिर अँध्यारो छ – यसबेला
| |
− | घरसम्म पुग्छु भन्छौ
| |
− | आफूभित्र उज्यालो बालेर हिँड्नु,
| |
− | त्यसलाई हुरीले केही गर्दैन
| |
− | झरीले फरक पर्दैन
| |
− | बाटो, बाटो त हिँड्नेहरूलाई त हो !
| |
− |
| |
− |
| |
− | '''चश्मा (कालो–२)'''
| |
− |
| |
− | कालो चश्मा लगाउने मान्छे
| |
− | देख्छ – धमिला पहाड
| |
− | अँध्यारो बाटो र कालो अंगारको झरी
| |
− | खाली कालो घाम देखेको उसले
| |
− | देख्दैन – छेउबाटै
| |
− | हिँडिरहेका कर्मशील कमिलाहरूको पंक्ति
| |
− | र इन्द्रेणीजस्तो रंगीन जिन्दगी ।
| |
− |
| |
− |
| |
− | '''प्रवाह–चिन्तन (रातो–२)'''
| |
− |
| |
− | बग्न त जसरी पनि बग्छु म
| |
− | नदी भएर बगूँ
| |
− | झरी वा बतास भएर बगूँ
| |
− | सपनामा पनि जब कुनै सपना देखिरहेको हुन्छु
| |
− | तर म बगिरहेकै हुन्छु !
| |
− |
| |
− |
| |
− | '''समय (निलो–२)'''
| |
− |
| |
− | कौसीमा सुकाएको
| |
− | चित्रको पहाड
| |
− | रातभरिको झरीले बगाएर लगेछ !
| |
− | बिहानमा – टोलाइरहेछ विचरा चित्रकार
| |
− | फेरि त्यस्तो चित्र
| |
− | बन्न पनि सक्छ, नबन्न पनि सक्छ !
| |
− |
| |
− | </poem>
| |